था बहुत शोर कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे

था बहुत शोर कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे

 मुल्क में होली भी हो गयी और जुमे की नमाज भी लेकिन ग़ालिब के पुर्जे नहीं उड़े। ग़ालिब ने खुद लिखा था - था बहुत शोर कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे देखने हम भी गए पै ये तमाशा न हुआ अब ग़ालिब तो औरंगजेब नहीं है जो उनका नाम लेना कुफ्र माना जाये, ग़ालिब का नाम लेने वालों का कमबख्त यूपी में इलाज भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि ग़ालिब न अबू आजम हैं और न आदित्यनाथ योगी ।  ग़ालिब  एक आम हिंदुस्तानी थे, ठीक उसी तरह जैसे करोड़ों दूसरे मुसलमान हिंदुस्तानी हैं। होली पर पहली बार देश में जुमे की नमाज को लेकर हौवा खड़ा किया गया ।  

मस्जिदों पर परदे तान दिए गये ।  लगा कि जैसे मुल्क में अनहोनी होने वाली है ,लेकिन कुछ नहीं हुआ। होली भी मस्ती के साथ खेली गयी और जुमे कि नमाज भी ख़ुलूस के साथ अता की गयी। शाहजहांपुर में लाट साहब की सवारी निकाली गयी। इस सवारी के ऊपर मुसलमानों ने फूल बरसाए। सम्भल में भी कुछ नहीं हुआ ,हालाँकि वहां सीओ अनुज चौधरी को सूबे की सत्ता ने हीरो बना दिया। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में वे यहां से कोई चुनाव भी लड़ जाएँ।या अजय देवगन कोई नई फिल्म बना दें

होली पर रंगों ने अपना असर दिखाया और रंग में भंग करने कि कोशिश करने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना रंग दिखाया ।  उन्होंने होली पर भी गोरखपुर में सियासी भाषण दिया। आखिर योगी जी आसानी से न सुधर सकते हैं और न बदल सकते हैं। वे बकौल ग़ालिब इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।

बिना हाथ में तलबार लिए केवल जुबान की कैंची से खूंरेजी करने अले अकेले योगी जी नहीं हैं।  मुल्क में बहुत से रंगरेज हैं जो अपने वाने से दिखते कुछ और हैं ,लेकिन होते कुछ और हैं। लेकिन इस मुल्क का  अवाम पहचानता  सभी को है। प्रतिक्रिया भी करता  है। मुझे लगता है कि ऐसा शुरू से होता आया है और आगे भी होता रहेगा। इस मिटटी के सौहार्द का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है।  मुग़ल आये और चले गए। अंग्रेज आये और चले गये ।  कांग्रेस आयी और चली गयी ।

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 इसी तरह भाजपा आई है और चली जाएगी एक दिन ,किन्तु न हम हिन्दू कहीं जाने वाले हैं और न मुसलमान। हमें  इसी धरती पर रहना है। अब भारत जैसे मजबूत मुल्क को बांटना आसान नहीं है।  इसकी कल्पना न योगी को करना चाहिए और न मोदी को।  हेमंत विस्वा सरमा   को भी  अब ये ख्वाब देखना छोड़ देना चाहिए। देश को कांग्रेस विहीन  करना या देश को मुसलमान विहीन कर खालिस हिन्दू राष्ट्र बनाना नामुमकिन है।

ख़ुशी की बात ये है कि मुसलमानों ने योगी जी कि योजना को फेल कर दिय।  ग्वालियर हो या जयपुर सभी जगह जुमे कि नमाज का वक्त  आगे-पीछे कर टकराव पैदा करने कि कोशिशों को नाकाम कर दिया गया।  मुमकिन है कि योगी मानसिकता के लोग इसे अपनी जीत समझ रहे हों ,लेकिन है उनकी हार। साम्प्रदायिकता ने इतिहास में कभी कोई जंग नहीं जीती ।  न अतीत के औरंगजेब ने और न वर्तमान के औरंगजेब ने। औरंगजेब हर युग में हारते आये हैं और हारते रहेंगे। इस देश की जनता बहुत समझदार है। जानती है कि मुद्दों पर  बहस करने के बजाय मुर्दों पर बहस करने का असल मकसद क्या है ? इसी समझदारी की वजह से अल्लामा इकबाल को कहना पड़ा था - सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी  ,ये गुलसितां हमारा सोते -जागते हिन्दू- हिन्दू चिल्लाने वालों को समझ लेना चाहिए कि चाहे आप कोई बाबरी ढांचा ढहा दो या किसी कब्र को खोदने का इरादा कर लो ।

समरसता टूटने वाली नहीं है। ये समरसता अलग ही ईंट-गारे से बनी है। इसे किसी एक ने नहीं बनाया ।  इसे हमारे पुरखों ने बनाया है। इसे तोड़ने का ख्याल भी अपने पुरखों के साथ गद्दारी है। मिर्जा ग़ालिब तभी तो कह गए कि - आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक। साम्प्रदायिकता की जुल्फ कभी सर होने वाली नहीं है। हमारे यहां हज्जाम ऐसी उलझी जुल्फों को काट फेंकते हैं। वक्त की कैंची यही काम करती आयी है ।  आगे भी करेगी। आप देखेंगे कि जैसा हिंदुस्तान हमारे पूर्वजों ने हमें सौंपा था ,ये वैसा ही रहेग।  यहां राम-रहीम को अलग करना नामुमकिन है।

यहां राम लला हों या कृष्ण महाराज उनके कपडे न योगी जी सिलते थे और न सिलेंगे ।  उनके कपडे मुसलमान ही सिलते थे और वे ही सिलेंगे। हमारे विग्रह हमारे नेताओं कि तरह तंगदिल नहीं हैं ।  वे कभी मुसलमानों के हाथों से बने कपडे पोशाकें   पहनने से इंकार नहीं करने वाले।

आप सभी को होली और रमजान की बधाइयाँ, मुबारकबाद देते हुए मेरा मश्विरा है कि हमारे बीच में यद कोई ऐसा आदमी हो जो योगी आदित्यनाथ को मिर्जा ग़ालिब के लिखे शेर पढ़वा सके ,तो बात बन जाय।योगी जी शायद यूपी के मुसलमानों को सताना बंद कर दें।   ग़ालिब कह गए हैं कि - यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं, अदू (शत्रु) के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों है। आज चूंकि बहुत से घरों में अखबार नहीं आया होगा इसलिए मौक़ा है कि आप इस आलेख को बार-बार पढ़ें और मित्रों कोभी पढ़वायें। शायद कुहासा छंटने में कुछ मदद हो सके

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