समरसता का प्रतिबिंब और प्रतिध्वनि है महाकुंभ।-डा•योगेन्द्र कुमार मिश्र "विश्वबन्धु"।

समरसता का प्रतिबिंब और प्रतिध्वनि है महाकुंभ।-डा•योगेन्द्र कुमार मिश्र

स्वतंत्र प्रभात।
ब्यूरो प्रयागराज।
 
 
 
 हिंदुस्तानी एकेडेमी उत्तर प्रदेश, प्रयागराज एवं अखिल भारतीय हिन्दी परिषद, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में *वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रयागराज महाकुंभ* विषयक संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी  का आयोजन रविवारको (गंगा पंडाल के बगल) में हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा लगाई गयी पुस्तक प्रदर्शनी पंडाल में किया गया।
 
 कार्यक्रम की अध्यक्षता विजयानन्द, अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष,वैश्विक हिन्दी महासभा एवं संचालन डॉ शंभू नाथ त्रिपाठी ’अंशुल’ ने किया।  संगोष्ठी एवं कविसम्मेलन में  वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रयागराज महाकुंभ विषय पर विचार व्यक्त किए। 
 
डा• योगेन्द्र कुमार मिश्र "विश्वबन्धु" ने प्रतिभाग करते हुए अपने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रयागराज की व्युत्पत्ति पृथ्वी के उत्पत्ति के साथ ब्रह्माजी ने दस हजार यज्ञों के साथ की जो समुद्र मंथन से पूर्व अस्तित्व में आ चुका था जहां माघमेला पहले से ही लगता रहा था और बिना निमंत्रण जनसामान्य आकर पुण्य-स्नान करते थे। समुद्र मंथन के पश्चात हर बारह वर्ष में लगने वाला कुंभ समरसता का जाता-जागता प्रमाण है। 
 
मुख्य अतिथि जितेन्द्र तिवारी, सचिव वैश्विक हिन्दी महासभा के मंत्री  ने कहा कि ’महाकुंभ की दिव्यता और भव्यता बता रही है कि आज वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रयागराज महाकुंभ किस प्रकार प्रमुखता से आयोजित हो रहा है। 
 
डा•नीलिमा मिश्रा ने कुंभ मेला का चित्रण करते हुए पढा--प्रयाग नगरी में सज गया है सदी का सबसे विशाल मेला।करोड़ों भक्तों की आस्था का है कुंभ मेला है पुण्य बेला।  मुख्य अतिथि नई दिल्ली से आए प्रो० जितेंद्र कुमार डॉ०शंभूनाथ त्रिपाठी अंशुल जी ने संचालन करते हुये पढा-- रक्त अपना बहाएं वतन के लिए प्राण अपना मिटाएं वतन के लिए ।
 
जब पर्णकुटियों की सीताएं, सोने का लालच करती।तब तब रावण आ जाता है, सीताएं तभी हरी जाती। -  डॉ०विजयानन्द ने पढा--दिल में पलती दुश्मनी, होठों पर है प्यार। साथ भी है और घात भी, आज का यह व्यवहार।  गंगा प्रसाद त्रिपाठी मासूम ने पढा--हम भी वही, तुम भी वही,हम दोनों में अंतर क्या है?मैं तुममें हूँ, तुम मुझमें हो,फिर मैं प्रीत करूँ किससे?कुंभ मेला है इसका असर देखिये झिलमिलाता दिखे यह नगर देखिये।
 
 
रचना सक्सेना ने पढा--मुक्ति भी इस त्रिवेणी में मिल जाएगी पाप की कालिमा सारी धुल जाएगी। अभिषेक केसरवानी रवि,संजय सक्सैना ने भी काव्य-पाठ किया।संतोष तिवारी प्रभारी प्रकाशन हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने समस्त अतिथि कविगण को माल्यार्पण एवं पुस्तक भेंट कर सम्मानित किया।

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