क्रशर की धूल से नगर की आबोहवा जहरीली, लोगों का जीना हुआ दुश्वार, जिम्मेदार बेखबर।
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ओबरा / सोनभद्र -ओबरा समेत डाला के वो क्षेत्र जहां पर अवैध खनन और स्टोन क्रशर नियमों को ताक पर रख चल रहे हैं वहां की आबोहवा खराब हो चुकी है। जहरीली हवा ने सांस लेना तक मुश्किल कर दिया है। हैरानी की बात है कि इन क्षेत्रों में हवा इतनी खराब हो चुकी है कि सांस लेने लायक हवा बची भी नहीं।जानकारों का मानना है कि यहां पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा ऐसा कोई व्यवस्था व सुविधाएं नहीं हैं,जिनसे शुद्ध हवा की क्वालिटी की जानकारी मिल सके। कुल मिलाकर देखा जाय तो इससे लेकर जिम्मेदार बेखबर हैं। जिससे पर्यावरण के दृष्टिकोण से पर्यायवरण काफी प्रदूषित है और वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि खनन और क्रशर माफिया की समानांतर सरकार चल रही है।
जिसे लेकर छह महीने पहले एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फटकार लगाते हुए क्रशरों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिये गये थे जिसके क्रम में 6 माह के अंदर करीब 96 क्रशर सील किए गये व संबंधितों को नोटिस दिया गया था। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि जिन्हें सील किया गया था और उन क्रशर मालिकों से जुर्माना वसूला गया है इसके बावजूद अवैध रूप से क्रशर धड़ल्ले से चल रहे हैं और वहीं प्रदूषण बोर्ड आंखें बंद कर मौन धारण किया हुआ है।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण व अवैध खनन के साथ स्टोन क्रशर की डस्ट से बचाने को लेकर चार वर्ष पूर्व शासन ने हर जिले में पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण बोर्ड गठन करने के निर्देश दिए थे जिसके सापेक्ष खनन के लिए लाइसेंस से लेकर अन्य एनओसी जारी करता।
खासतौर पर बोर्ड निगरानी के साथ पर्यावरण को स्वच्छ रखने से लेकर खदान तक साथ ही स्टोन क्रशर मालिक मानक की निगरानी करता है। अगर उनके द्वारा मानक पूरा नहीं किया जाता है तो एनओसी नहीं दी जाती है पर ये बोर्ड का फरमान कागजों तक ही सीमित रह गया। बीते 30 सितंबर को डाला बिल्ली क्रेशर संगठन का चुनाव संपन्न कराया गया देखने वाली बात है कि क्या इस नए संगठन के द्वारा मानक पूरा कराया जाएगा या संगठन द्वारा नियमों की धज्जियां उड़ाई जाएगी। आज तक उक्त आदेश को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। लिहाजा जो अव्यवस्थाएं चल रही थीं वो आज भी जारी हैं। जिनकी जिम्मेदारी है भी वो भी पैसों के आगे पर्यावरण को ताख पर रखकर सौदा कर लेते हैं।
जिससे क्रशर से निकलने वाली धूल ने पर्यावरण को दूषित कर दिया है तथा प्रदूषण से लोगों को सांस लेना मुश्किल हो गया है जिससे लोग आय दिन सांस की बीमारी से परेशान हैं । अगर मानकों के हिसाब से खनन होता और उसी आधार पर क्रशर लगाएं गए होते तो पर्यावरण की दुर्दशा न होती। स्टोन क्रशर ने सोनभद्र की आबोहवा के साथ लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया है।
लोगों का कहना है कि भविष्य में ओबरा डाला को रेगिस्तान बनने से कोई रोक नहीं सकता है और वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा उक्त प्रकरण पर सुधि लेना उचित नहीं समझा ।जानकारों का दावा है कि पुलिस-प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को सब कुछ जानकारी है लेकिन वो खनन माफिया के आगे नतमस्तक हैं।सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार क्रशर क्षेत्रों में गाईड लाईन का पालन नहीं किया जाता है जैसा कि खनन क्षेत्र में सुरक्षा का ध्यान न देना व पानी का छिड़काव न किया जाना व चारदीवारी का न होना और न ही शहर से बाहर खदान होना आदि शामिल है।
इसके साथ ही सोनभद्र में प्रदूषण इंडेक्स मापने का कोई यंत्र नहीं है इसलिए ये नहीं बताया जा सकता कि वायु प्रदूषण का स्तर कितना है। इस बारे में लोगों को कुछ भी नहीं पता। खबर लिखने के बाद भी कुछ लोगों को नजर में कलमकार मध्यस्था करने आ जाते हैं यहाँ तक कि कलमकारों को धमकी भी दी जाती है लेकिन स्थानीय लोगों के जेहन में एक सवाल उठ रहा है कि क्या संबंधित विभाग द्वारा गाईड लाईन का पालन कराया जायेगा या पहले की तरह प्रदूषण का दंश झेलते रहेंगे और लोग मौत के मुँह में समाते जायेंगे।
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