मुलायम सिंह यादव ! राजनीति की एक सम्पूर्ण किताब
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मुलायम सिंह यादव एक ऐसा नाम है जिनको यदि राजनीति की पूरी किताब कहा जाए तो गलत नहीं होगा यहां तक कि उनके पुत्र अखिलेश यादव को भी अभी बहुत कुछ सीखना है। छोटी कद काठी के मुलायम सिंह यादव मैनपुरी जनपद की करहल तहसील में जैन इंटर कालेज में अध्यापक थे। वहीं उनके साथ राम सिंह शाक्य भी अध्यापक थे जो कि उस समय हैंवरा जनपद इटावा में रहते थे। बाद में जब राजनीति में मुलायम सिंह यादव का कद बढ़ा तो राम सिंह शाक्य कई बार इटावा लोकसभा सीट से सांसद बने। राम सिंह शाक्य बताते थे कि वह हैंवरा से सैफई साइकिल से जाते थे और अपनी साइकिल पर मुलायम सिंह यादव को बैठाकर जैन इंटर कालेज तक पहुंचते थे। करहल से सैफई की दूरी 4 किलोमीटर और सैफई से हैंवरा की दूरी तीन किलोमीटर थी। इस तरह से मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रुप में की थी।
मुलायम सिंह यादव अपने शिक्षण कार्य से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे उनके कदम राजनीति की तरफ बढ़ रहे थे। डॉ राममनोहर लोहिया और उनके समाजवादी विचारों ने मुलायम सिंह यादव को काफी प्रभावित किया था। और धीरे-धीरे उनके कदम राजनीति की तरफ बढ़ रहे थे। धीरे धीरे वो इटावा के समाजवादी नेता रामसेवक यादव के संपर्क में आए। रामसेवक यादव सोशलिस्ट पार्टी के अच्छे नेताओं में से एक थे। जिनकी बदौलत मुलायम सिंह यादव को 1967 में इटावा की जसवन्तनगर विधानसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से टिकट मिल गया और उनका मुकाबला एक दिग्गज नेता लाखन सिंह से था। लोगों को विश्वास नहीं था कि मुलायम सिंह यह चुनाव जीत जाएंगे। लेकिन जब परिणाम आया तो मुलायम सिंह यादव पहली बार विधायक बन चुके थे। इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह लगातार राजनीति में सक्रिय रहे और जसवंतनगर विधानसभा सीट उनका पक्का गढ़ बन गया और वह वहां से लगातार चुनाव जीतते रहे।
सन् 1979 में लोकदल की स्थापना हुई और चौधरी चरण सिंह इसके अध्यक्ष बने। मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह का दामन थामा हो वह उनके शिष्य बन गये। अब तक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में अपनी पहचान बना चुके थे। मुलायम सिंह 10 वार विधानसभा और विधानसभा परिषद ने पहुंचे। और 1989 में जब देश में जनता दल बना उसकी कामयाबी के साथ ही मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री के रुप में उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई। और उनका ध्यान समाज के वंचित, दबे और पिछड़े तबके की तरफ जाने लगा। हालांकि 1989 में वह केवल तीन साल के लिए ही मुख्यमंत्री बने इसके बाद जनता दल टूट गया और मुलायम सिंह यादव को अपनी एक अलग पार्टी बनानी पड़ी और वह थी समाजवादी पार्टी। 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना हुई और मुलायम सिंह यादव उसके अध्यक्ष बने। उस समय मुलायम सिंह यादव की छवि उत्तर प्रदेश के एक मजबूत नेता के रुप में होने लगी थी और वह पिछड़ों के नेता के रूप में पहचान पा चुके थे। मुलायम सिंह यादव की याददाश्त इतनी तेज थी कि वह किसी से यदि एक बार मिल लें तो वह किसी को भूलते नहीं थे। मुलायम सिंह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
मुलायम सिंह यादव केवल अपनी ही नहीं बल्कि अपने विरोधियों की भी बहुत चिंता रखते थे। इटावा के कांग्रेसी नेता बलराम सिंह यादव जो जसवंतनगर विधानसभा सीट से लगातार मुलायम प्रतिद्वंद्वी थे। और राजीव गांधी सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी थे जब उनका कांग्रेस से मनमुटाव हुआ तो मुलायम सिंह यादव ने उन्हें अपनी समाजवादी पार्टी में शामिल कर मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया और वह सांसद बने। वहीं जब कल्याण सिंह की भी भारतीय जनता पार्टी से अनबन हो गई थी तो कल्याण सिंह ने अपना अलग दल बना लिया था बाद में मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह को भी अपनी पार्टी में शामिल किया और उनके बेटे राजवीर सिंह को अपनी पार्टी से विधायक बनाया। मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीति में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बिल्कुल समाप्त कर दिया था। इसके बाद आज जो बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में जो पहचान है उसमें मुलायम सिंह यादव का बहुत बड़ा योगदान है।
बात उन दिनों की है जब बहुजन समाज पार्टी और उसके मुखिया कांशीराम जो कि मूलतः पंजाब के रहने वाले थे दलित राजनीति को आगे बढ़ा रहे थे। लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। तब मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम को इटावा से लोकसभा चुनाव लड़वाया और अपने प्रत्याशी राम सिंह शाक्य की जगह कांशीराम को वोट देने की अपील की थी। कांशीराम पहली बार इटावा से सांसद चुने गए और लोकसभा पहुंचे। लेकिन इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को अब तक उठाना पड़ा। लोगों का मोह कांग्रेस से भंग हो चुका था और कई दशक तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की ही सरकार बनती रही। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी, आरएसएस और बजरंग दल ने अयोध्या राम मंदिर का मुद्दा तेज कर दिया था। अचानक ही यह आंदोलन उग्र हुआ अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराए जाने के लिए जब भीड़ नहीं सध रही थी तब मुलायम सिंह यादव को गोली चलवाने का आदेश देना पड़ा था। और उस दिन से मुलायम सिंह यादव पर हिंदुत्व भारी पड़ने लगा। लेकिन मुलायम सिंह यादव अपनी बात पर हमेशा कायम रहे।
इटावा और मैनपुरी मुलायम सिंह यादव की कर्म स्थली रही है। उन्होंने जो भी संघर्ष किया वह इटावा और मैनपुरी से ही शुरू किया था। और इटावा मैनपुरी के एक एक लोगों को वह नाम से पहचानते थे। जब मुलायम सिंह यादव को पहली बार सोशलिस्ट पार्टी से जसवन्तनगर से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिला तब उनके पास चुनाव लड़ने तक के पैसे नहीं थे तब सैफई और आसपास के लोगों ने किसी तरह पैसा इकट्ठा करके मुलायम सिंह यादव को चुनाव लड़ाया था। मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को अपने हाथों से सींचा है। और जब उन्हीं के सामने उनके पुत्र अखिलेश यादव और भाई शिवपाल सिंह यादव के बी अनबन हुई तो मुलायम सिंह यादव ने यही कहा था कि हमने इस पार्टी को अपने हाथों से सींचा है, और हम इसे टूटता हुआ नहीं देख सकते। मुलायम सिंह यादव उर्फ नेता जी उर्फ धरतीपुत्र आज हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन वह एक ऐसे नेता थे जो राजनीति की पूरी किताब थे। हम कुछ शब्दों या लाइनों में उनके जीवन को वंया नही कर सकते।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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