डॉक्टरों झुकने को नहीं तैयार-'सुप्रीम' आदेश अस्वीकार !

डॉक्टरों झुकने को नहीं तैयार-'सुप्रीम' आदेश अस्वीकार !

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में प्रशिक्षु महिला चिकित्सक को यौन हिंसा के बाद हुई हत्या मामले में न्याय की मांग को लेकर डॉक्टरों का आंदोलन स्ट्राइक पर है उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार शाम तक काम पर वापस लौटने के निर्देश को भी नही माना है और उनकी हडताल जारी रही। यह बात सही है कि आरजी कर कालिज की दिल दहला देने वाले बर्बर क्रूर, वीभत्स और हैवानियपूर्ण घटना का विरोध होना ही चाहिए, ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सकें। पूरा देश इस दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना से विचलित है और अपने-अपने तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहा है। ऐसे में अपने एक साथ के साथ हुई ऐसी दरिदंगी के बाद डॉक्टरों का आक्रोशित होना स्वाभाविक है, उनकी न्याय की मांग भी उचित है, लेकिन उनके आंदोलन के  कारण गरीब तबके के लोगों को कितनी परेशानी और दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, इस को भी ध्यान में रखना बेहद जरूरी है।
 
हमें इस तथ्य को भी भूलना नहीं चाहिए कि डॉक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है। उनको यह दर्जा इसलिए मिला है, क्योंकि ईश्वर के बाद अगर किसी व्यक्ति को जिंदगी देता है तो वह डॉक्टर ही है। अमीर हो या गरीब डॉक्टर अपने प्रयासों से लोगों की जिंदगी में नया सवेरा लाते हैं।सही अर्थों में भगवान प्रत्यक्ष स्वयं अगर आते हैं तो वह धरती पर डाक्टर के रूप में ही सहज उपलब्ध हैं लेकिन युवती प्रशिक्षु डॉक्टर की रेप मर्डर की वीभत्स घटना के विरोध में पिछले 30 दिनों से डॉक्टर आंदोलन पर है और उनके आंदोलन के कारण गरीच तबके के लोगों को काफी दिक्कतों और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सही इलाज के अभाव में उनकी जान भी जा रही है। संभवत यही कारण है कि देश के सबसे बड़ी आदालत ने डॉक्टरों को काम पर लौटने का आदेश दिया है।
 
प्रशिक्षु चिकित्सक दुष्कर्म और हत्या मामले से संबंधित याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के दौरान प्रदर्शन कर रहे चिकित्सकों को मंगलवार शाम पांच बजे तक काम पर लौटने का निर्देश दिया है और कहा कि उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई नहीं की जाए। साथ ही शीर्ष न्यायालय ने चेतावनी दी कि अगर वे लगातार काम से दूर रहते हैं, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने याद सम दिलाया कि उसने डॉक्टरों के काम पर लौटने के बाद उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई न करने का निर्देश दिया है और टिप्पणी की है कि अगर डॉक्टर काम पर नहीं लौटते हैं तो हम राज्य सरकार को कार्रवाई करने से नहीं रोक सकते हैं। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों से अपना आंदोलन खत्म करने की अपील की थी, लेकिन कोई सख्त निर्देश नहीं दिया था। है मगर सोमवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि सभी जानते हैं कि वास्तविक स्थिति क्या है, लेकिन डॉक्टरों को काम पर वापस जाना होगा। उन्होंने याद दिलाया कि डॉक्टरों का मुख्य काम इलाज करना है। कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए निर्देश दिये हैं।
 न सिर्फ कोलकाता बल्कि विभिन्न जिला अस्पतालों में भी जूनियर डॉक्टर खतरे में हैं।
 
वे पर्याप्त सुरक्षा है के बिना काम नहीं कर सकते। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने राज्य से कहा कि आपको डॉक्टरों की सुरक्षा निक्षति करनी होगी इसके साथ ही आपको है ध्यान रखना होगा कि उनका स्थानांतरण नहीं किया जा सकता है। दरअसल पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि आरजी कर अस्पताल मामले में न्याय की मांग को लेकर जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल और विरोध प्रदर्शन के कारण पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं महीने भर से अधिक समय से बाधित हैं। स्वास्थ्य सेवाएं बूरी तरह से चरमरा गयी है और अभी तक 23 लोगों की मौत हो चुकी है। समाज का गरीब और हाशिए पर रहने वाला वर्ग इससे काफी प्रभावित हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक बार फिर से राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी डॉक्टरों से अपील को है है कि वे काम पर लौट आएं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि वह जूनियर डॉक्टरों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है।
 
मुख्यमंत्री ने कहा है सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन डॉक्टरों को पालन करना चाहिए। अगर डॉक्टरों कुछ कहना है और उनकी कुछ मांगें हैं, तो वह पांच-10 लोगों का प्रतिनिधिमंडल लेकर उनसे बातचीत कर सकते हैं। उन्होंने माटीगाड़ा में हुए बलात्कार के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि पुलिस ने एक साल के भीतर दोषी को फांसी की सजा सुनिश्चित की है। राज्य सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विधानसभा में नया विधेयक पास किया है। हालांकि इस बीच डॉक्टरों का तर्क है कि एक माह से ज्यादा समय बीत गया है और जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। आखिर पीड़िता को न्याय कब मिलेगा ? उनके अनुसार वे काम बंद नहीं करना चाहते, लेकिन जब तक न्याय नहीं मिल जाता, तब तक वे अपने आंदोलन को चलाना चाहते हैं।
 
आंदोलनकारी जूनियर डॉक्टर ने मिलकर एक टेलीमेडिसिन सेवा 'अभय क्लीनिक' शुरू किया है जिसके माध्यम से उन्होंने मरीजों की देखभाल शुरू कर दी गई है। जूनियर डॉक्टर की अनुपस्थिति में उनके वरिष्ठ समकक्ष और प्रोफेसर बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) के साथ-साथ अन्य विभागों में मरीजों को देख रहे हैं। वे नहीं चाहते कि हमारे काम बंद करने से गरीब मरीजों को परेशानी हो। लेकिन मांगें स्पष्ट हैं, आप हमें न्याय दें और हम काम पर लौट आएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस मामले की गुत्थी नहीं सुलझी है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में 9 अगस्त को ट्रेनी डॉक्टर का शव मिला था और इस घटना के आज पूरे एक महीने हो गए है।
 
सीबीआई भी अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं गा पहुंच चुकी है। मगर डॉक्टरों को समझना होगा कि इस मामले की जांच ि अब राज्य सरकार के हाथ में नहीं है। देश की सबसे बड़ी एजेंसी सीबीआई  कर रही है। दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की निगरानी कर रही है। इसलिए उनको देश की सबसे बड़ी अदालत पर विश्वास करना चाहिए। इसलिए सही तो यही होगा कि डॉक्टर वापस काम पर लौट जाएं। जहां तक न्याय की मांग है तो ये काम को जारी रखते हुए भी दूसरे तरीके से आंदोलन कर सकते हैं। ऐसे समय चक्र में जब गरीब व कमजोर वर्ग के मरीजों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा वि उपलब्ध कराना अपने आप में एक चुनौती है, अक्रोशित डॉक्टरों की हड़ताल वि उनकी पीड़ा को ही बढ़ाती है। आंदोलन के कारण लोगों का जीवन संकट में नहीं पड़ना चाहिए।
 
ऐसे में गरीब, असहाय और समाज के कमजोर वर्ग को ध्यान में रखते हुए उनका इलाज शुरू कर देना चाहिए, ताकि आने वाले दिनों में चिकित्सा के अभाव में किसी भी मरीज की मौत नहीं हो।यह इंसानियत का भी तकाजा है। अदालत ने शुक्रवार शाम 5 बजे तक जूनियर डॉक्टरों को काम पर लौटने का अल्टीमेटम दिया था ।आरजी कर अस्पताल के डॉक्टरों ने अपनी हड़ताल खत्म करने के लिए पांच मांगें रखीं हैं. डॉक्टरों का कहना है कि जब तक उनकी ये पांच मांगें नहीं मानी जाएंगी, वे हड़ताल जारी रखेंगे. इन पांच मांगों में बंगाल के स्वास्थ्य सचिव और कोलकाता पुलिस चीफ का इस्तीफा भी शामिल है। 
 
सूत्रों के मुताबिक, बंगाल सरकार ने छात्रों को ईमेल भेजकर बातचीत करने के लिए कहा है. ममता बनर्जी ने 10 प्रदर्शनकारी डॉक्टरों के एक प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित किया था जिसे आंदोलनकारी डाक्टरों ने अस्वीकार कर दिया है। .डॉक्टरों का कहना है कि घटना के 30 दिन बाद भी राज्य सरकार ने आंदोलन की मुख्य मांगों को लेकर कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है. सारा दोष सीबीआई जांच पर मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. पुलिस की लापरवाही या स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
 
बता दें कि पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट की अगुवाई में हजारों जूनियर डॉक्टर्स सड़कों पर उतरे हुए हैं. ये पीड़ित डॉक्टर के लिए इंसाफ के साथ-साथ डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट के तहत लगभग 7000 डॉक्टर्स प्रदर्शन कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि सभी डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी परिस्थितियां बनाई जाएं, जिसमें अलग-अलग ड्यूटी रूम, शौचालय की सुविधा, सीसीटीवी कैमरे लगाने की व्यवस्था शामिल है. डॉक्टरों को सबसे पहले काम पर लौटना चाहिए और उन्हें काम पर वापस आकर अपना काम पूरा करना चाहिए।
 
मनोज कुमार अग्रवाल 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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