कुवलय
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कला का पुरस्कार
अब मिलता नहीं है
चित्र विचित्र होकर भी
कोई बिकता नहीं।
घर की वापसी
अब कोई करता नहीं
प्रजातंत्र के लिए
कोई लड़ता नहीं।
सभ्यता व संस्कृति से
अब कोई डरता नहीं
श्रमिक के लिए किसी से
कोई भिड़ता नहीं ।
अमल-धवल महामानव
अब कोई मिलता नहीं
निदाग कुवलय सा शख्स
कोई दिखता नहीं।
डॉ.राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
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