शिक्षण स्थल पर कार्य संस्कृति आवश्यक क्यों......???

इल्जाम ना दीजिए किसी एक शख्स को। मुजरिम सभी हैं इस हालात के लिए ।।

शिक्षण स्थल पर कार्य संस्कृति आवश्यक क्यों......???

  शिक्षक सुमित सौरभ की कलम से मधुपुर, देवघर

शिष्य के मन में सीखने की इच्छा को जागृत कर पाते हैं वहीं शिक्षक हैं। शिक्षक चेतना के चिराग है । शिक्षक के द्वारा विद्यार्थियों के भविष्य को बनाया जाता है एवं शिक्षक ही वो सुधार लाने वाला व्यक्ति होता है । शिक्षक आमतौर पर समाज को बुराई से बचता है और लोगों को एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाने  का प्रयास करता है। इसलिए हम कहते हैं की शिक्षक अपने शिष्य का सच्चा पथ प्रदर्शक है । प्राचीन भारतीय मान्यताओं के अनुसार शिक्षक का स्थान भगवान से भी ऊंचा माना जाता है क्योंकि शिक्षक  ही  हमें सही या गलत के मार्ग का चयन करना सीखाता है। संत कबीर दास ने कहा भी है की  गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताए।।
 
 बदलती दुनिया बढ़ते कदम जहां हमें नित्य नहीं ऊंचाइयों की ओर ले जा रहे हैं वहीं आज के कुछ शिक्षकों की बानगी शिक्षकों के स्तर को पाताल लोक ले जाने को अग्रसर है । कार्यस्थल अर्थात शिक्षा का मंदिर जिससे पवित्र स्थल इस जहां में कुछ भी हो नहीं सकता वहां अपनी कार्य कुशलता प्रदर्शित करने के स्थान पर उचित कार्य संस्कृति के अभाव में रणक्षेत्र बना लेना बिल्कुल भी नहीं न्यायोचित नहीं है । शिक्षकों का मूलभूत नैतिक मूल्य निष्पक्षता, जिम्मेदारी,सच्चाई,गरिमा तथा स्वतंत्रता है इन सभी मूल्य में एक का भी पतन दूसरे पतन की ओर ले जाता है । 
 
आज के वर्तमान परिदृश्य में शिक्षकों का व्यवहार - विचार में कमी न केवल उन्हीं शिक्षकों के लिए अवरोध पैदा कर रहा है बल्कि उनसे संबंधित शिक्षकों, विद्यार्थियों तथा विद्यालय को भी उतना ही नुकसान पहुंचा रहे हैं । मेरे समझ से शिक्षकों के गिरते नैतिक मूल्यों का कारण है शिक्षकों का स्वयं को ना निखार कर शिक्षण से अधिक समय एक दूसरे की शिकायत में बिताना, अपने दायित्वों का निर्वहन नियत पूर्वक ना कर कर,चापलूसी में, चुगली में एक दूसरे की बुराई करने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर अपने कद को छोटा करते जा  रहे है । शिक्षकों में अनुशासन व सकारात्मक दृष्टिकोण की कमी उन्हें पथ प्रदर्शित करने में अवरोध उत्पन्न कर रही है।
 
शिक्षकों एवं प्रधान शिक्षकों को यह कर्तव्य बनता है कि विद्यालय में ऐसे माहौल की स्थापना की जाए की सभी निर्भीक व स्वच्छंद होकर अपने कार्यों को पूरी तन्मयता एवं कुशलता पूर्वक अंजाम दे पाए। इस कार्य के लिए आवश्यक तत्व हैं, एक दूसरे को सम्मानित महसूस कराना , सहायक नेतृत्व  प्रदान करना, पारदर्शिता रखना, अनैतिक व्यवहारों का साक्षी होना, सीखने व विकास करने का अवसर प्रदान करना  । यह सुनिश्चित करें कि जितना आवश्यक हो उतना समय समर्पित कर एकजुटता   की भावना के साथ संगठन के दीर्घकालिक लक्ष्यों की ओर अपने महत्वपूर्ण विचारों के साथ सटीकता लायें।
 
विद्यालयों में विविधता एवं समावेशन आधारभूत तत्व बने इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है । मैत्रीपूर्ण प्रतिस्पर्धा से कार्य संस्कृति में बढ़ावा मिलेगा जो उच्च प्रदर्शन की ओर ले जाता है। शिक्षकों को अपने महत्वपूर्ण कौशल समय प्रबंधन, नेतृत्व, मजबूत कार्य,समस्या समाधान क्षमता, उच्च भावनात्मक बुद्धिमता तथा विभिन्न शिक्षण विधियां को अपना कर आवश्यक ज्ञान और अनुकूलनशीलता में स्वयं को शामिल कर समग्र विकास के मार्गदर्शक संवाहक एवं पथ प्रदर्शक बने। 
 

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