कोलकाता में दरिंदगी के विरोध का विरोध क्यों 

कोलकाता में दरिंदगी के विरोध का विरोध क्यों 

कोलकाता में आरजी कर अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डाक्टर के साथ दरिंदगी के मामले में कल छात्रों के 'नबन्ना अभियान' के समय पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कई स्थानों पर झड़पें हुईं। यहां तक कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज तक किया। कोलकाता में प्रदर्शनकारियों ने बंद का आवाहन किया था। जिसे ममता सरकार ने ठुकरा दिया और कहा कि कोई बंद नहीं है सभी लोग दफ्तर और अपने काम पर पहुंचे। कोलकाता, जिसे भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है, में हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई जिसने समाज की संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया। एक निर्दोष युवती के साथ हुई दरिंदगी के विरोध में जनता सड़कों पर उतरी, लेकिन इस विरोध के विरोध में भी एक नया विवाद खड़ा हो गया। इस लेख में, हम इस विरोध के विरोध की पृष्ठभूमि, उसके कारणों और इसके सामाजिक प्रभावों पर चर्चा करेंग। 
                इस तरह की घटना कोई नई बात नहीं है कुछ एक दिनों में एक न एक ऐसी घटना सुनने को मिलती है। लेकिन जब घटना होगी तो स्वाभाविक है कि उसका विरोध प्रदर्शन भी होगा। कोलकाता की घटना की की पृष्ठभूमि में  एक युवती के साथ हुई दरिंदगी की घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इस घटना के विरोध में विभिन्न संगठनों और नागरिकों ने प्रदर्शन किए, जिसमें न्याय की मांग की गई। सड़कों पर हजारों की संख्या में लोग उतरे और सरकार तथा कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने लगे। यह विरोध केवल कोलकाता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे देश में इस पर चर्चा होने लगी।
           विरोध का विरोध कारण और तर्क यह है कि यदि विरोध शांतिपूर्वक हो रहा है तो सरकार को इसमें बीच में नहीं आना चाहिए। किसी भी दरिंदगी का विरोध करना हमारा मौलिक अधिकार है। विरोध के विरोध में उठने वाली आवाजें इस बात पर जोर दे रही थीं कि इस प्रकार के प्रदर्शनों का राजनीतिकरण किया जा रहा है। कुछ वर्गों का मानना है कि इस घटना का इस्तेमाल कुछ राजनीतिक दल और संगठन अपने स्वार्थों के लिए कर रहे हैं। उनका तर्क है कि इस प्रकार के प्रदर्शन केवल सामाजिक स्थिति को और अधिक उत्तेजित करते हैं, जिससे कानून व्यवस्था को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।
               यह जरूरी है कि राजनीतिकरण के लिए विरोध नहीं होना चाहिए। किसी भी विरोध या प्रर्दशन में जब राजनीति प्रवेश कर जाती है तो वह घटना का प्रदर्शन न होकर केवल सरकार का विरोध बन जाता है। एक और तर्क यह है कि न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा करना चाहिए और कानून को अपना काम करने देना चाहिए। विरोध के विरोध में शामिल लोग यह मानते हैं कि इस प्रकार की सार्वजनिक गतिविधियों से न्याय प्रणाली पर दबाव पड़ता है, जिससे निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। उनका यह भी कहना है कि इस प्रकार की घटनाओं का समाधान केवल कानून व्यवस्था को मजबूत करके ही किया जा सकता है, न कि भावनात्मक विरोध प्रदर्शनों से।
            विरोध का विरोध करने पर सामाजिक प्रभाव बढ़ जाता है। और जिसकी निंदा हर जगह पर होती है। इस विरोध के विरोध का एक प्रमुख सामाजिक प्रभाव यह है कि इससे समाज में ध्रुवीकरण की स्थिति बनती है। जब एक वर्ग न्याय की मांग करता है और दूसरा वर्ग उस विरोध के तरीके पर सवाल उठाता है, तो इससे समाज में वैचारिक मतभेद गहरे हो जाते हैं। इसके अलावा, इससे लोगों के बीच विश्वास का संकट पैदा होता है, क्योंकि एक तरफ जहां लोग न्याय की उम्मीद करते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग उन्हें अपने एजेंडे के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास करते हैं। यह स्थिति समाज में संवाद की कमी को भी उजागर करती है। जब लोग खुलकर अपनी बात नहीं कह सकते या जब उनकी आवाज़ को विरोध के रूप में देखा जाता है, तो इससे संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है। यह समाज के लिए एक गंभीर चुनौती है, क्योंकि किसी भी लोकतांत्रिक समाज में संवाद का महत्व सर्वोपरि होता है।
                  कोलकाता में दरिंदगी के विरोध का विरोध एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस प्रकार की घटनाएं समाज के लिए अत्यंत दुखद होती हैं, और लोगों का आक्रोश स्वाभाविक है। लेकिन जब इस आक्रोश का विरोध होता है, तो यह समाज में एक नई बहस को जन्म देता है। यह आवश्यक है कि इस बहस को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाया जाए, ताकि समाज में न्याय और शांति स्थापित हो सके। संवाद और समझदारी के साथ ही हम इस प्रकार के संवेदनशील मुद्दों का समाधान कर सकते हैं। कोलकाता में जो हुआ उस घटना को सोचने भर से कंपकंपी महसूस होने लगती है। कि उस बच्ची की क्या ग़लती थी जो उसे इतनी बड़ी सजा मिली।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
 
 
 
 

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