फर्जी डिग्रियां बांटते विश्वविद्यालय युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ जिम्मेदार कौन?

फर्जी डिग्रियां बांटते विश्वविद्यालय युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ जिम्मेदार कौन?

अलीगढ़। यूं तो शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की समाज में बहुत इज्जत होती है सम्मान मिलता है। क्योंकि शिक्षक समाज का एक ऐसा आईना है जो समाज को जिस दिशा में चाहे उस दिशा में मोड सकता है। लेकिन आजकल का उच्च शिक्षा के ठेकेदारों का चलन कुछ ऐसा हो गया है कि कहते हुए भी शर्म आती है। फर्जी लोग मिलते थे, फर्जी नौकरी वाले मिलते थे आदि आदि, आजकल देखा जा रहा है कि फर्जी डिग्री भी मिलने लगी है। उक्त बातें जुगेंद्र सिंह विद्यार्थी असिस्टेंट प्रोफेसर अलीगढ़ ने कहीं।

उन्होंने कहा कि आजकल पूरे देश में एक ज्वलंत मुद्दा उठ रहा है कि आखिर फर्जी डिग्री वितरण में सरकार जिम्मेदार है, विश्वविद्यालय जिम्मेदार हैं या खुद छात्र जिम्मेदार है? लोगों ने घर गली मोहल्ले में फर्जी डिग्री बांटने के लिए अपनी-अपनी दुकानें सजा रखी है। उन दुकानों में डिग्री के हिसाब से अलग-अलग रेट भी फिक्स कर रखे हैं। हाल फिलहाल में कई विश्वविद्यालय की खबर अखबार में पढकर बड़ा अफसोस होता है कि जो शिक्षा समाज की तस्वीर और तकदीर बदलने का काम करती है। इस शिक्षा से जुड़े हुए कुछ लोग ऐसा कुकृत्य कर रहे हैं जो समाज को एक गलत दिशा में ले जा रहा है।

भारत में प्राचीन काल से ही गुरुओं को श्रेष्ठ समझा जाता है, और समझा भी क्यों न जाए गुरु एक दीपक के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन में उजाला करता है। अब जब गुरु ही अपने शिष्यों की जिंदगी से खिलवाड़ करें तब क्या हो सकता है? फर्जी डिग्रियों के खेल ने, जो मेहनतकश विद्यार्थी होते हैं, उनके भविष्य को चौपट कर दिया है। आजकल शिक्षा पैसों से खरीदी जाने लगी है। विशेषकर जो निजी विश्वविद्यालय हैं उनमें तो किसी भी छोटे-मोटे डिप्लोमा से लेकर पीएचडी और डीलिट तक की सारी डिग्रियां मोटे नोट की गड्डियों से खरीदी जा सकती है।

पहले विद्यार्थियों को कोई भी स्नातक या परास्नातक कोर्स करने के लिए नियमित विश्वविद्यालय में उपस्थित होना पड़ता था और कई बार परीक्षाओं के पड़ाव से गुजरने के बाद एक डिग्री हासिल होती थी तो उसकी वैल्यू भी थी लेकिन आजकल इस मुद्दे पर ना तो सरकार गंभीर है और ना ही शिक्षा विभाग से जुड़े हुए बड़े तबके के लोग। दरअसल हमारे सिस्टम में ही झोल है, पिछले कुछ दिनों में कई लोग फर्जी डिग्रियों के सहारे सरकारी नौकरी में भी चयनित हो गए।

लेकिन जो पकड़ा जाता है उसके ऊपर नाम मात्र की कार्यवाही हो जाती है बाकी यूं ही चल रहा है सब भगवान भरोसे। फर्जी डिग्रियों के खेल में सरकार को विचार करना चाहिए कि निजी विश्वविद्यालय की प्रशासन में कम से कम एक पदाधिकारी ऐसा हो जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रति जिम्मेदार हो और फर्जी डिग्री जारी करने वाले विश्वविद्यालय को नकेल कसने का काम सरकार करें।
आजकल हर कोई शॉर्टकट अपना रहा है, पैसे देकर डिग्री खरीदने के मामले आए दिन अखबारों की हेडलाइंस बनते हैं लेकिन बाद में क्या होता है यह कोई नहीं जानता। सरकार के साथ-साथ उच्च शिक्षा विभाग को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और विशेषज्ञों के साथ मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए वरना शिक्षा विभाग का जो हाल हो रहा है उसे देश देख रहा है। आखिर कब तक विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ करते रहेंगे हम इसका समाधान कब निकालेंगे

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