दस दिवसीय कार्यक्रम के बाद मोहर्रम के अवसर पर जलसा कार्यक्रम आयोजित
हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने जलसे में लिया बढ़-चढ़कर हिस्सा, दिया एकता व भाईचारे का संदेश
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महराजगंज। (मनोज पाण्डेय) नौतनवां ब्लाक क्षेत्र के ग्राम पंचायत अमहवा के खानकाह पर मोहर्रम पर्व के अवसर पर सूफी मोहम्मद बखशीश खान उर्फ सद्दाम बाबा के नेतृत्व में जलसा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जलसा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जियाउल लतीफ साहब किवला आसवी रहे। कार्यक्रम का संचालन इलाहाबाद से आए मौलाना महबूब आलम आसवी ने किया।
जानकारी के मुताबिक बरगदवा थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत अमहवा स्थित खानकाह पर मोहर्रम पर्व के अवसर पर लगातार दस दिनों से कार्यक्रम चल रहा था। शुक्रवार की देर रात डोला सजाकर गांव में भ्रमण करवाया गया। भ्रमण के दौरान या अली या मोहम्मद के नारे से पूरा गांव गुंजायमान हो उठा।कार्यक्रम में हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शिरकत कर एकता का मिसाल पेश किया।
खानकाह के अध्यक्ष सूफी मोहम्मद बखशीश खान उर्फ सद्दाम बाबा ने कहा कि जो जुल्म और सितम यजीद और उसके साथियों ने पैगंबर मोहम्मद के खानदान पर किए उसे शायद ही कोई भूल सकता है। कर्बला में शहीद नवासा-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन के कटे हुए सर की तिलावात को देखकर लोग हैरान रह गए।
यजीदियों ने इमाम हुसैन के बेटे नन्हे अली असगर को भी नहीं छोड़ा और उसे भी तीरों से छलनी-छलनी कर दिया। मुहर्रम का पूरा महीना खानदाने रसूल की शहादत की याद दिलाता है। सद्दाम बाबा ने कहा कि बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार को बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया था।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जियाउल लतीफ साहब किवला आसवी ने कहा कि इमाम हुसैन ने ईस्लाम के खातिर अपनी और अपने खानदान की कुर्बानी कर्बला के मैदान में दी। ऐसे में हजरत इमाम माम हुसैन का नाम कर्बला की क्रांति की याद से जुड़ा हुआ है। इमामे हुसैन ने बहादुरी, इंसाफ, मोहब्बत व बलिदान पेश कर इस दुनिया के लिए जो पैगाम दिया है वह कभी भुलाया नही जा सकता। वहीं कार्यक्रम में पहुंचे मौलाना नासिर हुसैन ने रुतबा, बुलन्दी का जिक्र करते हुए कहा कि इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान मे अपने साथियों के साथ सर कटाना मंजूर किया पर सर को झुकाना पसंद नहीं किया। ऐसे में उनके शहादत को भुलाया नहीं जा सकता।
ग्राम प्रधान मुफ्ती अख्तर रजा ने कहा कि इमाम हुसैन इंसाफ और इंसानियत के तरफदार थे और उन्होंने बहादुरी के साथ ईमान और इंसाफ के लिए यजीद की सेना से जंग लड़ रहे थे लेकिन यजीद की सेना ने साजिश रचकर इमाम हुसैन की शहादत कर दी थी।
इस दौरान सद्दाम खान, तुफैल अहमद, मुख्तार, नासिर अली, सैयद अली, प्रदीप, मुकेश समेत सैकड़ो हिंन्दु व मुस्लिम समुदाय के लोग मौजूद रहे।
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