तमसा नदी में जलकुंभी का अंबार
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अम्बेडकरनगर। पौराणिक तमसा नदी के अस्तित्व को पुन: उसके पुराने स्वरूप में लाने के लिए सरकार ने भले ही लाखों रुपया खर्च किया हो लेकिन साफ-सफाई के अभाव में जलकुंभी ने नदी के पानी को पूरी तरह से ढक लिया है। इससे पशु-पक्षियों को पीने के पानी के लिए काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है।तमसा नदी का अस्तित्व त्रेता कालीन है। बाल्मीकि रामायण और श्रीरामचरित मानस आदि धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि वनगमन के दौरान प्रभु श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण जी ने पुण्य सलिला तमसा नदी के किनारे ही प्रथम पड़ाव डाला था और उसके बाद श्रवण क्षेत्र में राजा दशरथ के बाण से श्रवण के माता-पिता की मृत्यु भी हुई थी।
रामचरित मानस में इसका उल्लेख भी है।नगर पालिका प्रशासन ने जेसीबी मशीन से सफाई शुरू कराई थी। शहजादपुर जाने वाले पुल के पास जमा जलकुंभी को हटाया गया। यह प्रशासन का दावा है परंतु स्थिति देखी जा सकती है पालिका प्रशासन द्वारा क्या कार्य करवाया गया। तमसा नदी से जलकुंभी निकालने का काम मजाक से कम नहीं है। नगर पालिका प्रशासन कई महीनों से झील से जलकुंभी निकलवा रहा है लेकिन तमसा नदी की स्थिति आज भी जस की तस है।
तमसा नदी की खुदाई भी हुई थी गत वर्ष सरकार ने नदी के उद्गम स्थल अंबेडकरनगर जिले में नदी का जीर्णोद्धार कराया था। साथ ही नदी के दोनों किनारों पर वृहद वृक्षारोपण का कार्य भी कराया था लेकिन रखरखाव और देखभाल के अभाव में नदी का अस्तित्व फिर खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। नदी में जलकुंभी के अलावा अनेकों प्रकार के खर पतवार उग आने से पौराणिक नदी की सांसें उखड़ रही हैं। साथ ही उद्योगों का अपशिष्ट नदी में प्रवाहित होने से भी इसका जल आचमन लायक भी नही रह गया है।
लोगों का कहना है
प्रशासन तमसा नदी की सफाई पर लगातार पैसे भी खर्च कर रहा है और हासिल कुछ नहीं हो रहा। जब पैसे खर्च ही हो रहे हैं तो पालिका प्रशासन पूरी तमसा नदी को एक बार में एक बड़े अभियान के जरिए साफ क्यों नहीं कराता है? यह बात अब हर शहरवासी के मन में कौंधने लगी है। तमसा नदी संरक्षण के नाम पर कहीं हर दिन फर्जीवाड़ा तो नहीं हो रहा? तमसा नदी की सुंदरता को जलकुंभी से ज्यादा दागदार पालिका के जिम्मेदार कर रहे हैं, जिनकी कार्यप्रणाली हरेक मामले में संदिग्ध हो जाती है। जनपद मुख्यालय के लोगों का कहना है कि जिलाधिकारी का आदेश और निर्देश केवल महज निरीक्षण तक ही सीमित है।
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