क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति में होगा बड़ा बदलाव
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क्या वास्तव में उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। क्या आपसी मतभेद के कारण भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हो रहा है। यह ऐसे प्रश्न हैं जो आजकल मीडिया जगत और विपक्ष के नेताओं की जुबान से सुने जा रहे हैं। एक समय और आया था प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खासमखास एके शर्मा को उत्तर प्रदेश की राजनीति में भेजा गया था। तब भी मीडिया में यह प्रश्न बड़ी तेजी से उछला था और उसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली के कई राउंड लगाए थे। मीडिया में तो यह तक खबर चल गई थी कि एके शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी योगी आदित्यनाथ का प्रभाव खत्म नहीं हुआ है।
उस समय ऐके शर्मा को योगी कैबिनेट में शामिल करके बिजली मंत्री बना दिया गया। और मामला शांत हो गया। लेकिन पिछले दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं है जो हर व्यक्ति के जेहन में हैं। हाथरस की घटना के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस दिन घटना का हाल लेने और घायलों को देखने के लिए हाथरस पहुंचे उसी दि उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक भी हाथरस पहुंचे लेकिन दोनों साथ साथ नहीं थे। जब ब्रिजेश पाठक को पता चला कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हाथरस में ही हैं और घायलों को देख रहे हैं तो वह रुक गये और जब योगी आदित्यनाथ का दौरा समाप्त हुआ तब ब्रजेश पाठक घायलों को देखने के लिए निकले।
राजनीति में अंदरखाने में बहुत कुछ चलता रहता है लेकिन वह जनता के सामने नहीं आता और जो जनता के सामने आता है वह पूरा सच नहीं होता। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने वक्तव्य में कई बार ब्रिजेश पाठक को मुख्यमंत्री कह के पुकार चुके हैं। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जब उम्मीद से काफी कम सीटें मिलीं तो इसकी मतरणा पर प्रदेश के कई वरिष्ठ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को दिल्ली बुलाया गया। और हार का ठीकरा भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर और उत्तर प्रदेश के नेतृत्व पर फोड़ा गया। उस समय ब्रजेश पाठक को कई बार दिल्ली जाना पड़ा शायद वह दिल्ली जाने वाले प्रदेश के नेताओं में सबसे ज्यादा दिल्ली जाते पाए गए।
भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अचानक कुछ भी करने के लिए विख्यात है। वह परिवर्तन के लिए ना तो डरता है और न ही कोई बहुत ज्यादा सोचता है। मध्यप्रदेश और राजस्थान में जिस तरह से मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। यह कदम इस बात की गवाही देता है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का वर्चस्व कम नहीं हुआ था। शिव राज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने चौथी बार प्रचंड जीत हासिल की थी जब कि सभी राजनैतिक विश्लेषक यही कह रहे थे कि इस बार मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत ही कठिन होगा।
लेकिन वहां शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया जिनको बहुत ही कम लोग जानते थे। भारतीय जनता पार्टी को एक अनुशासित पार्टी के रुप में जाना जाता है और यह बात सत्य भी है कि यदि वह कोई फैसला लेती है तो उसके विरोध में कोई भी नहीं जा सकता है और न ही पार्टी से बाहर कोई ऐसे वक्तव्य देता है जिससे कि पार्टी की ख़िलाफत हो। उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय भी ऐसा संकेत दे चुके हैं कि उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में बहुत कुछ बदलने वाला है। विपक्ष के नेताओं को सत्ता पक्ष की एक एक खबर रहती है। लोकसभा चुनाव के दौरान ब्राह्मण मतदाता भी कुछ ख़ुश नहीं था जो कि भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक माना जाता है।
क्षत्रिय समाज भी कुछ एक घटनाओं से नाराज़ दिखे थे और यही कारण था कि जनसत्ता दल के मुखिया रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया जिन्होंने राज्यसभा के चुनाव में खुलकर भारतीय जनता पार्टी का सपोर्ट किया था लोकसभा चुनाव में वह यह कहते दिखे कि हमारे कार्यकर्ता और वोटर स्वतंत्र हैं और वह किसी को भी वोट कर सकते हैं। राजा भैया ने एक तरह से इशारा कर दिया था कि वह लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं हैं। प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर राजा भैया का अच्छा प्रभाव है और उन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में मनमुताबिक जीत न मिलने पर भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत ही विचारणीय प्रश्न बन गया है और इससे भी बड़ा यह कि वह अयोध्या जैसी सीट हार गई जहां उसने विश्वप्रसिद्ध राम मंदिर का निर्माण कराया है और इस मुद्दे को हर समय उठाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाराणसी में जीत का अंतर भी कम होना कोई छोटा मोटा कारण नहीं है। यह सब कारणों को देखते हुए विपक्ष कह रहा है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव होने वाला है।
अखिलेश यादव, अजय राय और अभी हाल ही में प्रदेश की राजनीति में अपना दमखम दिखाने वाले आजाद समाज पार्टी के मुखिया चन्द्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने एक मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि आप लिखकर रख लीजिए कि छै माह के अंदर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा उलटफेर होने जा रहा है। अब उस उलटफेर का यह मतलब तो नहीं हो सकता कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार हटकर किसी दूसरी पार्टी की सरकार बन जाए। क्यों कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार में है। उलट फेर का सभी का इशारा एक ही तरफ जा रहा है और वह है नेतृत्व परिवर्तन।
वैसे यह एक बहुत ही कठिन प्रश्न है। इस विषय पर शीर्ष नेतृत्व को बहुत बार सोचना होगा। लेकिन जिस तरह से ब्रिजेश पाठक लगातार दिल्ली जा रहे हैं इससे बहुत कुछ सुगबुगाहट तो सुनाई ही दे रही है। हमने कइयों बार भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा बहुत बड़े उलटफेर करते देखा है और वह उसमें कामयाब भी हुए हैं। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक सीट जीत कर देश की राजनीति में खलबली मचा दी है। और दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुज़रता है। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को 62 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी तब केन्द्र में भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत में थीं। अभी के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी 33 सीटों पर सिमट गई तो केन्द्र में वह बहुमत से दूर रह गई। हालांकि उनकी गठबंधन की सरकार अच्छी तरह से चल रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में मतभेद अब सामने नज़र आने लगे हैं।
और यही कारण है कि आज प्रदेश के सभी विपक्ष के वरिष्ठ नेता अपने अपने दावे कर रहे हैं हालांकि कोई खुलकर नहीं बोल रहा है। क्यों कि वह उनकी पार्टी का मामला नहीं है लेकिन नजर सभी दलों के नेताओं की लगी हुई है कि उत्तर प्रदेश में अब कौन सी राजनैतिक घटना घटेगी और उससे भारतीय जनता पार्टी को लाभ मिलेगा कि विपक्ष को क्यों कि समाजवादी पार्टी में लोकसभा चुनाव के बाद काफी आत्मबल आ गया है और अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया है कि सभी समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता 2027 के विधानसभा के चुनाव की तैयारी में जुट जाएं।
अखिलेश यादव से जो भी कार्यकर्ता मुलाकात करने जा रहा है वह बस एक ही बात बोल रहे हैं कि अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी करें। क्यों कि अखिलेश यादव को दिख रहा है कि यदि परिणाम लोकसभा चुनाव के समान रहते हैं तो वह सत्ता तक पहुंच सकते हैं लेकिन अभी समय बहुत दूर है और भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व भी इस पर अपनी पूरी नज़र बनाए है कि आखिरकार कमी क्या है और उस कमी को कैसे दूर किया जा सकता है।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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