पीलीभीत पीटीआर में विभागीय अनदेखी से वन्यजीवों के प्राकृतिक वास स्थलों पर अवैध कब्जा
दो दशक पहले लगा भग वन क्षेत्र से खदेड़े गए थे 275 परिवार
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थारु पट्टी,गोरखडिब्बी,गुन्हान में वसे परिवारों के पुनर्वास की हो व्यवस्था
बलदेव सिंह संधू
पूरनपुर। पीलीभीत टाइगर रिजर्व में अनुकूल वातावरण से वन्य जीवन तेजी से फल फूल रहा है। पीटीआर का जंगल एक और पड़ोसी देश नेपाल तो दूसरी तरफ लखीमपुर खीरी के दुधवा नेशनल पार्क के जंगल से जुड़ा हुआ है। यही नहीं इसकी एक सीमा उत्तराखंड के सुरई रेंज के जंगल से मिली हुई है। वन विभाग के नक्शे पर भले ही यह सीमाएं हैं लेकिन वन्य जीवों को इसमें नहीं बांधा जा सकता। दशकों पुराने इस प्राकृतिक गलियारे में नेपाल के शुक्ला फांटा जंगल से हाथी, बाघ, गेंडा, आदि पीटीआर की बरही रेंज के लग्गा-भग्गा वन क्षेत्र से होते हुए दुधवा तक विचरण करते हैं। यह पूरा क्षेत्र वन्यजीवों के लिए सैकड़ो वर्षों से प्राकृतिक गलियारे का काम करता है। लेकिन वन विभाग की अनदेखी के चलते बराही रेंज में वन्यजीवों के इस गलियारे पर लोगों ने अवैध रूप से कब्जे के बाद झोपड़िया डालकर गांव बसा लिए। वन विभाग की भूमि पर फसले लहलहा रही है। ग्रामीण पशुपालन करने लगे हैं।
ऐसे में आए दिन नेपाली हाथी इधर विचरण करते हुए अक्सर ग्रामीणों की झोपड़ियां और फसलें उजाड़ते हैं। वन विभाग ने कई बार इन परिवारों को हटाने का प्रयास किया लेकिन कामयाबी नहीं मिली। गोरख डिब्बी और गुन्हान में बसे ग्रामीणों को अन्य स्थानों पर बसा दिया जाए तो वन्य जीवों के लिए यह एक प्राकृतिक गलियारा फिर मुफीद हो सकता है। बराही रेंज में पडने वाली शारदा नदी के उस पार का जंगल लग्गा-भग्गा कहलाता है। यह 13 किलोमीटर लंबा और 3.5 किमी चौड़ा है। यह वन क्षेत्र नेपाल की शुक्ला फांटा वन्य जीव अभ्यारण्य ओर पीलीभीत में बह रही शारदा नदी के मध्य स्थित है। पिलर संख्या 17 से शुरू होकर पिलर संख्या 27 से आगे यह जंगल एक छोर पर दूधवा टाइगर रिजर्व से जुड़ता है ,तो दूसरी ओर हरिद्वार का राजा जी नेशनल पार्क स्थित है।
पहले इस पूरे इलाके में इंसानी दखल नहीं था। वन्यजीव स्वच्छंद रूप से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में विचरण करते थे।इस क्षेत्र में इंसानी दखल बढ़ने से वन्य जीवों का स्वच्छंद विचरण प्रभावित हो गया। वर्तमान में गोरख डिब्बी व गुन्हान में कई परिवार झोपड़ियां डालकर रह रहे हैं, लेकिन नेपाल के शुक्ला फांटा से आने वाले हाथी अक्सर उनकी फसलों ओर झोपड़ियों को उजाड़ देते हैं।इस क्षेत्र में मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं लगातार सामने आती रहती है।इन परिवारों को कहीं और बसाए जाने की जरूरत है।
हाई कोर्ट के आदेश पर 1997 में हटाए गए थे 275 परिवार
1997 में तत्कालीन डीएफओ सुनील दुबे ने हाईकोर्ट व शासन के आदेश पर इन कब्जदारों के खिलाफ अभियान चलाया था। लग्गा-भग्गा वन क्षेत्र से 275 परिवारों को खदेड़ने का काम किया गया था।तत्कालीन डीएम गंगाराम बरुआ ने वन विभाग के कर्मचारियों पर लूट का मुकदमा भी दर्ज कराया था। बाद में साक्ष्यों के अभाव में मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई थी। इसके बाद थारु जनजाति के परिवार शारदा नदी के आसपास अपना बसेरा फिर से बसाने लगे। वर्तमान में थारु पट्टी,गोरखडिब्बी व गुन्हान में कई परिवार झोपड़ियां डालकर रह रहे हैं।
अतिक्रमित वन भूमि पर ही हो रहा मानव-वन्यजीव संघर्ष
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मानव वन्य जीव संघर्ष के जो मामले सामने आ रहे हैं। ज्यादातर अतिक्रमित वनभूमि से ही जुड़े हुए हैं।जंगल से निकलकर बाघ बफर जोन में आता है। जहां उसे नरकुल की झाड़ियों के समान गन्ने के खेत दिखाई पड़ते हैं ,और वह इन्हें अपना ठिकाना बना लेता है।बाघ उसे अपना इलाका समझता है। जबकि उस जमीन पर अवैध कब्जा कर फसल उगाई जा रही होती है। ऐसे में ही मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ता चला जा रहा है।
वन भूमि पर इन गांवों के लोग काबिज
गुन्हान, गोरखडिब्बी,रमनगरा,बरुआ कुठारा,नौजल्हा नकटा,गभिया सहराई,थारु हट,आदि तथा लग्गा भग्गा चौकी क्षेत्र के पास भी वन भूमि पर लोग काबिज हैं। बराही रेंज के थारु पट्टी में वन भूमि पर अवैध कब्जे का मामला संज्ञान में नहीं है।अगर अवैध कब्जा किया गया है तो जांच कर कब्जे को हटवाया जाएगा।किसी भी दशा में वन भूमि पर कब्जा नहीं होने दिया जाएगा।
मनीष सिंह, डीएफओ पीटीआर।
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