यूपी की प्रतिष्ठा वाली सीटों पर क्या होगा 

यूपी की प्रतिष्ठा वाली सीटों पर क्या होगा 

वैसे तो उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं लेकिन कुछ विशेष सीटें ऐसी हैं जहां राजनेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। कुछ सीटें तो ऐसी हैं जहां मुकाबला न के बराबर है उसमें से एक सीट है वाराणसी की सीट जहां से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी का किसी से कोई मुकाबला नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन कल अजय राय के नेतृत्व में प्रियंका गांधी और डिंपल यादव के रोड में जिस तरह से भीड़ टूटी थी उसके कई मायने हो सकते एक तो बड़े नेताओं को देखने की ललक लोगों में दिखाई देती है लेकिन इसको हल्के में लेना भी भूल होगी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन क्या वह प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और उनके द्वारा वाराणसी में कराये गये विकास कार्यों का सामना कर सकेंगे। वैसे तो ऐसा मुश्किल ही लग रहा है। लेकिन अजय राय वहां के स्थानीय नेता हैं और गठबंधन के प्रत्याशी हैं आप बिल्कुल उनको हल्के में नहीं ले सकते और फिर इतिहास गवाह है कि इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेई जैसे नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन वाराणसी में ऐसा होना अभी तो असंभव ही लग रहा है।
 
वाराणसी के बाद यदि चर्चा में कोई सीट है तो वह है अमेठी और रायबरेली। यहां हम दो सीटों की एक साथ बात इसलिए कर रहे हैं कि आज की परिस्थिति में दोनों का एक दूसरे से परस्पर संबंध है। अमेठी से भारतीय जनता पार्टी से केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी चुनाव लड़ रहीं हैं। जब कि यह सीट गांधी परिवार की परंपरागत सीट है राहुल गांधी यहां से तीन बार सांसद चुने जा चुके हैं लेकिन 2019 के चुनाव में वह स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए। कांग्रेस ने बड़ी चतुराई से राहुल गांधी को रायबरेली से प्रत्याशी बनाया जब कि स्मृति ईरानी के खिलाफ अपने साधारण कार्यकर्ता को चुनाव मैदान में उतारा।
 
अब यह साधारण कार्यकर्ता हैं कौन जिनसे स्मृति को हार का डर सता रहा है। वैसे इस बार अमेठी में चुनाव बड़ा पेचीदा है। कांग्रेस ने गांधी परिवार के खासमखास किशोरी लाल को चुनाव मैदान में उतारा है। किशोरी लाल वहां के स्थानीय निवासी हैं और राहुल गांधी की अनुपस्थिति में वह ही अमेठी का संसदीय कार्य देखते थे। किशोरी लाल वहां काफी लोकप्रिय नेता हैं। यदि स्मृति ईरानी किशोरी लाल से चुनाव हारती हैं तो यह बहुत बड़ी बात होगी। जब कि यदि राहुल गांधी से चुनाव हारती तो कोई बड़ी बात नहीं होती। इसलिए कांग्रेस गठबंधन ने किशोरी लाल को एक रणनीति के तहत वहां से प्रत्याशी बनाया है।
 
राहुल गांधी चाहते तो अमेठी से चुनाव लड़ सकते थे लेकिन इसकी पटकथा बहुत पहले से तैयार हो चुकी थी जब सोनिया गांधी जो कि हमेशा से रायबरेली से सांसद रहीं हैं उन्होंने अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए चुनाव न लड़ने का फैसला किया और राज्य सभा के लिए चुन ली गईं। दरअसल यह सीट उन्होंने राहुल गांधी के लिए ही छोड़ी थी। राहुल गांधी को वैसे तो यहां पर कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए लेकिन चुनाव में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इसलिए कांग्रेस कार्यकर्ता काफी मेहनत कर रहे हैं। अब हम बात करते हैं कन्नौज लोकसभा क्षेत्र की जहां से पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के नेता वर्तमान सांसद सुब्रत पाठक चुनाव मैदान में हैं। ये वही सुब्रत पाठक हैं जो पहले अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव हार चुके हैं लेकिन 2019 के चुनाव में उन्होंने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को हरा दिया था। इसलिए सुब्रत पाठक के हौसले बुलंद हैं। वैसे कन्नौज काफी पहले से ही समाजवादियों का गढ़ माना जाता रहा है। यहां से राम मनोहर लोहिया और मुलायम सिंह यादव जैसे नेता चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे हैं।
 
कन्नौज में समाजवादी पार्टी ने पहले अपने भतीजे तेज़ प्रताप यादव को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन अंतिम समय में फेरबदल हुआ और तेज प्रताप यादव को हटाकर अखिलेश यादव खुद प्रत्याशी बन गये। अखिलेश यादव की साख यहां दांव पर लगी है। अखिलेश यादव पहली बार कन्नौज से सी सांसद चुने गये थे लेकिन अब पहले से परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। अखिलेश यादव के लिए भी चुनाव इतना आसान नहीं है। और इसीलिए यहां से तेज प्रताप यादव को हटाया गया था। तेज प्रताप यादव एक बार मैनपुरी से सांसद रह चुके हैं। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में कन्नौज में वो सुब्रत पाठक से हल्के पड़ रहे थे क्योंकि इन पांच वर्षों में सांसद रहते सुब्रत पाठक ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली है लेकिन अखिलेश यादव के सामने शायद वह हल्के नजर आ रहे हैं। क्यों कि अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में वहां बहुत से विकास कार्य कराए हैं। इससे पहले भी मुलायम सिंह यादव ने भी कन्नौज के लिए काफी कुछ किया है। अब देखना है कि कन्नौज की जनता ने किसको आशीर्वाद दिया है। 
 
मैनपुरी लोकसभा सीट भी भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के लिए प्रतिष्ठित सीट बन गई है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के बाद डिंपल यादव मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ी थीं और बहुत ही अच्छे मार्जिन से चुनाव जीतीं थीं। यह भी माना जा सकता है कि उस उपचुनाव में डिंपल यादव को सहानुभूति की लहर मिली होगी लेकिन मैनपुरी लोकसभा सीट का जो जातीय समीकरण है वह समाजवादी पार्टी के ही पक्ष में जाता है। भारतीय जनता पार्टी ने इस बात अपने वर्तमान मैनपुरी विधायक और उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। चुनाव के बाद जयवीर सिंह काफी सहज दिखाई दे रहे हैं। लेकिन मैनपुरी लोकसभा सीट में जसवन्तनगर विधानसभा क्षेत्र करहल विधानसभा क्षेत्र और किशनी विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो हार जीत का फैसला कर देते हैं। यह एक बहुत बड़ी यादव बैल्ट है लेकिन शाक्य मतदाताओं की संख्या भी यहां कम नहीं है। मैनपुरी से बहुजन समाज पार्टी ने शाक्य उम्मीदवार उतारकर डिंपल यादव के लिए कुछ मुश्किलें खड़ी की हैं। लेकिन वहां समाजवादी पार्टी को हराना इतना आसान नहीं है।
 
लखनऊ लोकसभा सीट से केन्द्रीय रक्षामंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। राजनाथ सिंह यदि इस बार चुनाव जीत जाते हैं तो यह उनकी हैट्रिक होगी। समाजवादी पार्टी ने राजनाथ सिंह के खिलाफ रविदास मेहरोत्रा को चुनाव मैदान में उतारा है। रविदास मेहरोत्रा स्थानीय प्रत्याशी हैं और काफी लोकप्रिय भी हैं लेकिन राजनाथ सिंह के सामने कुछ कमजोर ही नजर आ रहे हैं। प्रतापगढ़ लोकसभा सीट और कौशांबी लोकसभा सीट पर राजा भैया की प्रतिष्ठा दांव पर है। हालांकि राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल से कोई भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है लेकिन उन्होंने अंदर ही अंदर समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट को समर्थन दे दिया है। दरअसल राजा भैया ने राज्यसभा चुनाव में बिना किसी शर्त के भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को समर्थन दिया था और लोग सभा में भी भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन करना चाहते थे लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उनको एक सीट भी देना उचित नहीं समझा। इसलिए राजा भैया ने अपने समर्थकों से एलान कर दिया कि वह स्वतंत्र हैं और अपना वोट किसी को भी दे सकते हैं। लेकिन जब राजा भैया का यह स्टेटमेंट आया कि भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान सांसद से जनता खुश नहीं है तो यह निश्चित हो गया कि वह अंदर ही अंदर समाजवादी पार्टी को अपना समर्थन दे चुके हैं। प्रतापगढ़ की समाजवादी पार्टी की रैली में अखिलेश यादव ने भी यह घोषणा कर दी कि कभी-कभी जो हमसे नाराज़ रहते थे वह आज हमारे साथ हैं। उनका सीधा इसारा राजा भैया के समर्थकों पर था।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 
 
 

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