थानों पर नहीं हो रही सुनवाई एसपी के चौखट पर पहुंच रहे फरियादी..
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स्वतंत्र प्रभात
गोण्डा :
पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर शिकायतों का बोझ बढ़ा है। कारण यह है कि थानों पर फरियादियों की सुनवाई नहीं होती।अगर मामला सुना भी गया तो राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण उन्हें न्याय नहीं मिल पाता। यही वजह है कि फरियादियों का थानों से विश्वास उठता जा रहा है।योगी सरकार के सख्त आदेश के बाद भी थानों में न राजनीतिक हस्तक्षेप बंद हुआ और न ही दलालों का वर्चस्व।लिहाजा लोगों को अपनी फरियाद लेकर एसपी के ऑफिस जाना पड़ रहा है।एसपी ऑफिस में ही नहीं लोग योगी के जनता दरबार में भी फरियाद लगा रहे हैं।शासन जन सुनवाई को लेकर काफी गंभीर है।फरियादियों को अपनी समस्याएं लेकर बेवजह अफसरों के पास दौड़ न लगानी पड़े, इसके लिए संपूर्ण तहसील दिवस और समाधान दिवस आयोजित किए जाते हैं,
फिर भी लोगों की समस्याओं का निस्तारण नहीं हो पाता है।अक्सर देखा जाता है कि जब पीड़ित व्यक्ति थाने पर जाता है तो उसकी सुनवाई नहीं हो पाती।पुलिस उसका शिकायती पत्र ले तो लेती है, लेकिन इसका उपयोग अक्सर दूसरे पक्ष से आर्थिक लाभ लेने में करती है।इससे पीड़ित व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता है।यहां तक कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जिनमें पुलिस शिकायतकर्ता के विरोध में ही गलत रिपोर्ट लगाकर भेज देती है।
इससे पीड़ित व्यक्ति न्याय पाने के लिए भटकता रहता है। हालात यह हैं कि अब लोगों को सीओ स्तर से न्याय मिलने का भी भरोसा समाप्त हो गया है।पीड़ित को आस रहती है कि यदि वह एसपी से मिलेगा तो उसे न्याय मिल सकता है।इसी उम्मीद को लेकर पीड़ित व्यक्ति एसपी ऑफिस के चक्कर काटता रहता है। एसपी ऑफिस के जन शिकायत प्रकोष्ठ के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो प्रतिदिन 110 से 150 तक प्रार्थना पत्र आते हैं।इनमें सर्वाधिक शिकायतें जिले के सभी थाना क्षेत्र की होती हैं।
एसपी का भी नहीं है थानेदारों में खौफ
अफसर जनशिकायतों के निस्तारण को लेकर बैठकों में भी मातहत अधिकारियों को दिशा-निर्देश देते हैं और उनका प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण करने की बात कहते हैं।यहां तक कि लापरवाही करने पर दंडित करने की बात कहने में भी कोई गुरेज नहीं करते, लेकिन जिले के थानेदारों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है।एसपी ने क्राइम बैठक में ही जनशिकायतों के निस्तारण करने पर जोर दिया जाता है, लेकिन उनके ऑफिस पर आई शिकायतों के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि थानों पर अधिकारी जिम्मेदारी के साथ जनसमस्याओं का निस्तारण नहीं करते।
थानों मे दलालों का वर्चस्व
सरकार चाहे जिस पार्टी की रही हो, लेकिन थाने दलालों से मुक्त नहीं हो पाए हैं।राजनीतिक हस्तक्षेप का आलम यह है कि अक्सर नेता उत्पीड़न करने वालों और आपराधिक तत्वों के पक्ष में पैरवी करते नजर आते हैं। पीड़ित व्यक्ति को खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। यही हाल दलालों का भी है। वे भी अपराधियों की तरफदारी करके मोटी कमाई करते और कराते हैं।इससे पीड़ित पक्ष को थाने से निराशा हाथ लगती है।
घरेलू हिंसा के मामले अधिक
एसपी ऑफिस पर आने वाली शिकायतों पर यदि गौर करें तो अधिकतर मामले जमीन के विवाद और घरेलू हिंसा से जुड़े होते हैं।जमीन के विवाद राजस्व विभाग से जुड़े होने के कारण पुलिस इन विवादों के निस्तारण में लाचार नजर आती है।पीड़ित को लगता है कि पुलिस मामले को जान बुझकर टाल रही है।अपर पुलिस अधीक्षक ने कहा बताया कि जनशिकायतों के निस्तारण पर काफी जोर दिया जा रहा है।शिकायतें निस्तारित भी हो रही हैं।अगर इन दिनों ऑफिस पर शिकायतें बढ़ रही जिसकी समीक्षा कर कार्रवाई की जाएगी।
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