माननीयों की 'विलासिता' के आगे गरीब जनता का विकास गौण।
भले ही पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है लेकिन यह महोत्सव जितने गर्मजोशी से मनाया जा रहा है उतनी हकीकत नही है। आज भी देश में गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, अन्धविश्वास जैसे तमाम समस्याएं है जो देश को विकसित बनाने की जगह और भी बदतर स्थिति में पहुंचा रही है। इसकी वजह यह है कि लोग केवल अपने अधिकारों को तो जान रहे है लेकिन अपने कर्तव्यों से जानबूझकर पीछे रहना चाहते है। देश की इस स्थिति को लेकर सबसे अधिक देश की गंदी राजनीति और देश के कुछ नेता जिम्मेदार है। जो केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए हर हद तक जाने को तैयार है। ऐसे नेताओं को देश की स्थिति, परिस्थिति से कोई लेना देना नही है बस उनका एक लक्ष्य है कि लोगों को गुमराह करके किस तरह सत्ता पाकर अपनी तिजोरी भरी जाये। हालांकि कुछ नेता जरूर है जो देश हित में ध्यान रखकर कार्य करते है लेकिन अधिकतर नेता केवल जनता को मूर्ख समझकर उन्हें गुमराह करके सत्ता पर काबिज होकर केवल लूटना ही अपना परम लक्ष्य बनाये है।
देश को आजाद हुए सात दशक से अधिक हो गया लेकिन देश आज भी विकसित देश नही बन सका। इसकी मुख्य वजह है कि देश में नेताओं की गंदी राजनीति और भ्रष्टाचार। जिससे केवल लोगों को अपने हित के आगे राष्ट्रहित गौण लगता है। हालांकि आजादी के बाद कुछ सरकारों ने देश की स्थिति को सुधारने का प्रयास किया लेकिन भ्रष्टाचार का दीमक देश में इतना अंदर चला गया है कि इससे छुटकारा पाना शायद स्वप्न हो गया है। हो सकता है कि कोई सरकार आये और भ्रष्टाचार पर शत प्रतिशत रोक लगा सके लेकिन यह बात केवल स्वप्न जैसी लगती है। क्योकि जिस तरह देश में भ्रष्टाचार हर एक सरकारी कार्यालय में अपना कब्जा किया है। उससे तो लगता है कि इससे छुटकारा नही मिल सकता है और इस बात में कोई दो राय नही है कि भ्रष्टाचार के पोषण में नेताओं का हाथ न हो। नेताओं के वजह से ही एक पढ़ा लिखा अधिकारी भी भ्रष्टाचार में शामिल रहता है। कहने को भले नेता सफेदपोश होते है लेकिन इन्ही नेताओं में कुछ गद्दार और भ्रष्टाचारी है जो अपने डर्टी पालिटिक्स के वजह से देश को बर्बाद करने पर तुले है। उनको देश की स्थिति और सम्मान से कोई मतलब नही है।
भारत में आज भी भारी संख्या में गरीब है जिनको न सही से रहने के लिए आवास है और न ही सही से भोजन मिल पाता है। बच्चे भी है जो मजबूरी में कूडा बीनने या अन्य तरह के ऐसे कार्य करने पर विवश है। हालांकि सरकारे गरीबों के उत्थान के लिए विभिन्न तरह की योजनाएं संचालित कर रही है लेकिन फिर भी आज बहुत ऐसे पात्र गरीब है जिनको जिम्मेदार लोगों की लापरवाही से योजना का लाभ नही मिल रहा है। जबकि कई अपात्र लोग भ्रष्टाचार और मिलीभगत की वजह से जिम्मेदार लोगों की लापरवाही और मनमानी से गलत ढंग से योजना का लाभ ले रहे है। आखिर इस तरह के गलत नीति से देश के गरीब का कैसे विकास होगा। नेता है कि चुनाव के समय गरीबों को तरह तरह के वादा करके चुनाव जीत जाते है और फिर पूरे पांच साल तक गरीब को देखने या उसकी स्थिति के बारे में नेताजी के पास समय नही रहता है। और चुनाव बीतने के बाद आम आदमी खास करके गरीब ठगा सा महसूस करता है। आखिर इस तरह देश कैसे बनेगा एक विकसित राष्ट्र जहां केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना ही है परम उद्देश्य।
देश में जहां पर कुछ गरीब दो वक्त रोटी के लिए परेशान है वही पर देश के नेता सरकारी पैसे का खर्च करके अपने विलासिता का परम आनंद लेते है। भारत में नेता बनना पूर्व जन्म का परम पुण्य का प्रतिफल माना जाता है। जहां पर देश के नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए सब कुछ करने को तैयार रहते है। नेता लोग चुनाव में जनता से किये वादे को ऐसे भूल जाते है जैसे उनका वादा भी एक स्वप्न था। भारत में जितना गरीबों को योजनाओं का लाभ मिलने में खर्च नही होता उससे ज्यादा नेताओं के लिए खर्च हो जाता है। इसका उदाहरण देखा जा सकता है कि एक गरीब किसी तरह एक कमरा बनाना चाहता है तो मुश्किल से डेढ लाख रूपया नही मिल पाता है।
जबकि नेताओं के लिए बंगला गाडियां, सुरक्षा, खानपान, रहन-सहन, भत्ते समेत तमाम सुविधाएं रहती है। आखिर इस तरह की सुविधा पर हो रहे खर्च तो आम जनता से ही विभिन्न तरह के टेक्स से ही लिया जाता है। जहां पर नेता लोग अपने को नेता बन जाने पर कुछ समझते ही नही। भारत एक गरीब देश है लेकिन यहां के नेताओं की विलासिता और रहन सहन किसी विकसित देश के नेताओं से पीछे नही है। गरीब जनता और आम आदमी से विभिन्न तरह के टैक्स से आये पैसों को नेताओं पर मनमानी खर्च होता है। करना क्या है हर वर्ष घाटे का बजट दिखाकर महंगाई और भ्रष्टाचार बढाने में सहयोगी बनना है। भारत में नेताओं की वीआईपी कल्चर से ही देश की स्थिति चिंताजनक है। कहने को भले ही सरकार की विभिन्न संस्थाएं अपने रिपोर्ट से पीठ थपथपाएं लेकिन हकीकत यही है कि जब तक नेताओं के ऊपर हो रहे मनमानी खर्च पर रोक नही लगेगा तब तक देश की स्थिति में कोई खास सुधार देखने को नही मिल पायेगा।
भारत में नेताओं के ऊपर हो रहे खर्च को लेकर आये दिन चर्चा होती रहती है और सच में लगता भी है कि क्या इस तरह के मनमानी खर्च पर रोक लगाकर देश को और भी आर्थिक मजबूती नही प्रदान की जा सकती है। इसी क्रम में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे सम्पन्न राष्ट्र के नेता अपने देश के विकास के आगे अपनी विलासिता को कम स्थान देते है जबकि भारत में नेताओं के 'भौकाल' से ही तो राजनीति चमकती है जनता भले ही आवास के लिए तरस जाये लेकिन नेताजी के लिए करोड़ो का खर्च तो चुटकी का खेल है। और यही गंदा खेल भारत को पीछे ले जा रहा है। नेताओं के लिए हो रहे फालतू खर्च पर रोक लगाना बहुत ही जरूरी है। क्योकि जो पैसा नेताजी के लिए फालतू खर्च हो रहा है उसी पैसे से जनता के लिए जरूरी और बुनियादी सुविधाओं में बढोत्तरी करना चाहिए। क्योकि नेता बनने के बाद मिल रही सुविधाएं ही नेताओं को भ्रष्ट करने में अधिक सहायक हो रही है। क्योकि जब तक देश के नेताओं के विलासिता की सुविधाओं पर कैची नही चलेगी तब तक देश का विकास ऐसे ही कच्छप गति से होगा। भले सरकारें तरह तरह के आंकड़े पेश करें लेकिन जमीनी स्तर की समस्या तो केवल आम आदमी ही जानता है।
देश में जो नेता राजनीति करने आते है उनमें से ज्यादातर नेता अपने व्यवसाय में समाजसेवा लिखते है लेकिन देखते ही देखते उनकी सम्पत्ति में बेतहासा वृद्धि देखने को मिलती है। और जो समाजसेवी लिखता है समाज ही उसकी सेवा में लग जाता है। जहां पर कुछ नेताओं को छोड़कर बाकी नेता तो केवल अपनी तिजोरी भरने के लिए राजनीति रूपी समाजसेवा करते है। तो इस तरह के समाजसेवियों से देश का भला कैसे हो सकता है। जो केवल अपनी विलासिता के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है। देश की यही गंदी राजनीति और स्वार्थपरता की वजह से भारत विकासशील देश की श्रेणी में है।
भारत को विकसित और सम्पन्न राष्ट्र बनाने के लिए आम जनता को राष्ट्रहित में कार्य करने वाले नेताओं को ही मौका देना चाहिए न कि ऐसे नेताओं को जो केवल सफेदपोश में गद्दारी करने की कसम खाकर राजनीति करने आये है। जनता को भी ऐसे नेता का चुनाव करना जरूरी है जो सच में देश के लिए बेहतर करने का जज्बा रखता है। जिसका देश के लिए कुछ खास करने का उद्देश्य हो। जनता को ऐसे नेताओ को पूरी तरह नकार देना चाहिए जो लोगों को जाति और धर्म में बांटकर राजनीति करते है और केवल अपना उल्लू सीधा करते है। देश के विकास की सही परिकल्पना तभी की जा सकती है जब देश का हर एक नेता राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर राजनीति और कार्य करे। क्योकि आज बहुत बहुरूपिये नेता है जो खुद को भ्रष्टाचार का विरोधी बताते है कि जबकि खुद ही परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार का साम्राज्य चलाते है। ऐसे नेताओं से आम आदमी को बचना जरूरी है। देश के विकास में आम आदमी का भी महत्वपूर्ण योगदान है लेकिन आम आदमी को चुनाव के समय अपने बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना चाहिए। देश में जब तक नेताओं के फालतू विलासिता और सुख सुविधाओं पर रोक नही लगेगा तब तक देश का विकास सही ढंग से नही हो पायेगा। देश में भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति को जड़ से मिटाना जरूरी है और इसमें आम आदमी का बहुत बड़ी भूमिका है। हम सब को यह सोचना चाहिए कि देश हमारा है और हम अपने देश का नेतृत्व किसी गलत के हाथ में नही देंगे। यह मानसिकता स्थानीय चुनाव से लेकर लोकसभा तक के चुनाव में ध्यान रखना चाहिए तब जाकर देश का नेतृत्व अच्छे लोगों के हाथों में होगा और देश विकास की नई इबारत लिखेगा।
संतोष कुमार तिवारी
भदोही उत्तर प्रदेश
Comment List