प्रकृति के संरक्षण को लौटने का समय

प्रकृति के संरक्षण को लौटने का समय

लेखक – इंद्र दमन तिवारी विश्व भर में पाँव पसार चुकी कोविड-19 महामारी के बन्धन में हमें कब तक रहना होगा, यह कह पाना कठिन तो है ही इसमें अनिश्चितता भी है, इस से उपजे भय, निराशा एवं अकेलेपन के बीच पूरे देश ने दीप प्रज्वलित कर एकजुटता का जो सन्देश दिया वह किसी दिवास्वप्न

लेखक – इंद्र दमन तिवारी

विश्व भर में पाँव पसार चुकी कोविड-19 महामारी के बन्धन में हमें कब तक रहना होगा, यह कह पाना कठिन तो है ही इसमें अनिश्चितता भी है, इस से उपजे भय, निराशा एवं अकेलेपन के बीच पूरे देश ने दीप प्रज्वलित कर एकजुटता का जो सन्देश दिया वह किसी दिवास्वप्न से कम नहीं है..

इस से पूर्व भी 22 मार्च को पूरे देश ने प्रधानमंत्री की अपील पर अपनी जान जोख़िम में डाल कर काम करने वालों के सम्मान में विभिन्न माध्यमों से ध्वनि उतपन्न कर अविस्मरणीय दृश्य उतपन्न कर दिया था। अब जबकि देशव्यापी लॉक डाउन की अवधि ख़त्म होने में एक सप्ताह ही बचा है तो यही समय है कि इस अवधि के बाद के हालात का सामना करने हेतु रणनीति बनाई जाए..

चूँकि जब हम इस संकट से उबरकर आर्थिक मंदी एवं व्यक्तिगत, सामाजिक जीवन में उथल पुथल जैसी वास्तविकता के समक्ष उपस्थित होंगे तब ऐसे सवाल उठने निश्चित हैं जिसके केंद्र में यही होगा कि क्या ऐसी विपदा को रोका जा सकता था ? इस से होने वाले क्षति में किस प्रकार कमी की जा सकती थी ? इस संकट ने पारिस्थितिकीय असन्तुलन के सुसुप्त विषय को पुनः जीवित किया है। इस संबंध में पर्यावरणविदों की बात पर गम्भीरता से विचार करना आवश्यक है जिन्होंने सदैव कहा है कि प्राणियों की ही भाँति पेड़ों में भी जीवन होता है एवं ‘कोरोना तो क्षुब्ध प्रकृति का सबसे कमज़ोर अस्त्र है’।

मानवीय तृष्णा ऐसे संकट को आमन्त्रित करती है ऐसे में पारिस्थितिकी सन्तुलन हेतु प्राचीन भारतीय दर्शन सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं, जिनमें सभी जीवित प्रजातियों को समान सम्मान देने के उदाहरण हैं..जिनमें प्रकृति को महत्ता एवं शांतिपूर्ण-सहअस्तित्व का दर्शन परिलक्षित होता है..वर्तमान में लॉक डाउन के चलते हवा की गुणवत्ता में चमत्कारिक सुधार एवं शहरी क्षेत्रों में वन्यजीवों के विचरण करने की खबरें यही तो दर्शाती हैं कि हम ने प्रकृति में किस हद तक अनुचित हस्तक्षेप किया है।

भारत के शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे में भारी अंतर दृष्टिगोचर होता है, इसे देखते हुए कोविड-19 ने इस क्षेत्र में निवेश की आवश्यकता को पुनः रेखांकित किया है साथ ही डब्ल्यूएचओ की ‘वन हेल्थ’ की उस अवधारणा को भी आत्मसात करने की दरकार है जिसमें मनुष्य, प्राणी, वनस्पति, एवं पर्यावरण की सेहत के लिए बहुस्तरीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

यही सही समय है कि हमारी प्राचीन परंपरा के अनुरूप पर्यावरण-पारिस्थितिकी सन्तुलन का संरक्षण करने हेतु प्रत्येक वैश्विक नागरिक सक्रिय योद्धा बने, ताक़ि पृथ्वी पर मनुष्य एवं अपने यथोचित आवासों में समस्त जीव-जंतु स्वस्थ रह कर सौहार्दपूर्ण सह-आस्तित्व का आनंद ले सकें, हमें पृथ्वी को सुरक्षित बनाने की कवायद तेज करनी होगी ताक़ि पर्यावरण संरक्षण के साथ ही मानव, वनस्पति, एवं जीव-जंतुओं की सेहत सुधर सके।

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