कोरोना वारियर्स का सुरक्षा कवच बनेगा अध्यादेश

कोरोना वारियर्स का सुरक्षा कवच बनेगा अध्यादेश

विश्वजीत राहा (स्वतंत्र टिप्पणीकार) कोरोना वारियर्स पर बढ़ते हमले के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को एक अध्यादेश को मंजूरी दे दी जिसे राष्ट्रपति की मंजुरी भी मिल गई। इस अध्यादेश में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में शामिल स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा और उनके उत्पीड़न को संज्ञेय और गैर

विश्वजीत राहा (स्वतंत्र टिप्पणीकार)

कोरोना वारियर्स पर बढ़ते हमले के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को एक अध्यादेश को मंजूरी दे दी जिसे राष्ट्रपति की मंजुरी भी मिल गई। इस अध्यादेश में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में शामिल स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा और उनके उत्पीड़न को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध बनाया गया है। अध्यादेश में इस जुर्म के लिये अधिकतम सात साल कैद और 5 लाख रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। पिछले दिनों देश भर में हो रहे इन हमलों के विरूद्ध इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आंदोलन की चेतावनी दी थी।
बहरहाल महामारी अधिनियम 1897 को 123 साल पहले अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था जब भूतपूर्व बंबई स्टेट में बूबोनिक प्लेग ने महामारी का रूप लिया था। इसके बाद सन 1959 में हैजा के प्रकोप को देखते हुए उड़ीसा सरकार ने पुरी जिले में ये अधिनियम लागू किया था। साल 2009 में पुणे में जब स्वाइन फ्लू फैला था, तब इस एक्ट के सेक्शन 2 को लागू किया गया था। 2018 में गुजरात के वडोदरा जिले के एक गांव में 31 लोगों में कॉलरा के लक्षण मिलने, 2015 में चंडीगढ़ में मलेरिया और डेंगू की रोकथाम, 2020 में कर्नाटक ने सबसे पहले कोरोना वायरस से निपटने के लिए महामारी अधिनियम 1897 को लागू किया।
गौरतलब है कि हाल के दिनों में देश के कई क्षेत्रों से स्वास्थ्यर्मियों, पुलिसकर्मियों व सफाईकर्मियों पर हमले एवं उन्हें परेशान किये जाने की घटनाएं सामने आई हैं। इन हमलों में सबसे पहला मामला उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से आया जहां नवाबपुरा में लोगों को मौत के मुंह से बचाने गई मेडिकल टीम पर ईंट पत्थर व लाठी डंडों से हमला किया गया। इस हमले में एक डॉक्टर व एंबुलंेस चालक को गंभीर चोट लगी थी। इसी तरह का मामला मध्य प्रदेश के इंदौर, रायसेन व श्योपुर में भी आया। बिहार के औरंगाबाद और कर्नाटक के पडरायनपुरा में भी ऐसी घटना हुई थी।
बहरहाल 123 साल पुराने कानून में संशोधन के अध्यादेश के मुताबिक अगर हमला होता है और किसी स्वास्थ्यकर्मी को मामूली चोट आती है तो दोषी पाये जाने पर 50 हजार से दो लाख तक का जुर्माना और तीन महीने से पांच साल तक की जेल हो सकती है। अगर चोट गंभीर हुई तो उस स्थिति में जुर्माना एक लाख से पांच लाख और छह महीने से 7 साल तक के लिए जेल हो सकती है। इस अध्यादेश के दायरे में मेडिकल स्टाफ्स के अलावे सामुदायिक स्तर पर कार्य करनेवाली आशा कार्यकर्ताओं को भी शामिल किया गया है। इतना ही नहीं अध्यादेश के मुताबिक स्वास्थ्य कर्मियों के घायल होने, सम्पत्ति को नुकसान होने पर मुआवजे का प्रावधान किया गया है।
इस कानून को तब भी लागू किया जाएगा जब स्वास्थ्यकर्मियों को अपने मकान मालिकों या पड़ोसियों से महज इस संदेह की वजह से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा कि उनके काम की प्रकृति की वजह से कोरोना का संक्रमण हो सकता है। संशोधित कानून के तहत ऐसे अपराध को संज्ञेय और गैर जमानती बनाया गया है। इतना ही नहीं अध्यादेश के लागू होने के साथ ही जो लोग भी हिंसा के लिये जिम्मेदार होंगे, उनसे नुकसान की भरपायी की जायेगी और यह तोड़फोड़ की गई सम्पत्ति के बाजार मूल्य का दोगुना होगा।
अध्यादेश पारित करने से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से डॉक्टरों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। गृह मंत्री ने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में डॉक्टरों की भूमिका की सराहना करते हुए विश्वास दिलाया था कि सरकार उनकी सुरक्षा के लिए सार्थक कदम उठायेगी। सरकार की इस अपील के बाद स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिये कानून बनाने की मांग कर रहे आईएमए ने इस बैठक के बाद क्रमशः 22 अप्रैल और 23 अप्रैल को प्रस्तावित ‘व्हाइट अलर्ट‘ और ‘काला दिवस‘ विरोध को वापस ले लिया था।
बहरहाल, महामारी अधिनियम में संशोधन तो हो गया पर क्या यह अध्यादेश कोरोना वारियर्स के लिए सुरक्षा कवच बन पायेगा, इस पर कुछ कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी क्योंकि अध्यादेश जारी होने के बाद भी छिटपुट हमले जारी हैं। इस अध्यादेश में पुलिसकर्मियों व सफाईकर्मियों जैसे कोरोना वारियर्स की कोई चर्चा नहीं जबकि यूपी व झारखंड सहित देश के कई जगहों पर इनके ऊपर हमले हुए हैं। जरूरी है कि सरकार इन पर हुए हमले को भी इस अध्यादेश के दायरे में लाये। सरकार लोगों में लॉकडाउन को लेकर जागरूकता लाये व क्वारंटाइन सेंटर जाने के डर से लोगों को बाहर निकाले और यह समझाने को सार्थक प्रयास हो कि क्वारंटाइन संेटर जाना कब और क्यों जरूरी है। साथ ही किसी भी स्थान की स्क्रीनिंग के लिए जाने वाले मेडिकल टीम को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी स्थान पर स्क्रीनिंग के लिए जाने से पहले उस स्थान के प्रबुद्ध लोगों को अपने विश्वास में लिया जाय ताकि लोगों में भ्रम की स्थिति न बनें और ऐसी स्थिति से बचा जा सके।

इतना ही नहीं उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में तो लॉकडाउन के बाद सब्जी दुकान बंद करवाने पहुंचे पुलिस टीम पर पथराव किया गया जिसमें एक पुलिसकर्मी घायल हो गया। इसी तरह लखनऊ कैंट थाना क्षेत्र के कसाईबाड़ा इलाके में बेवजह घूम रहे युवाओं को हटाने गये पुलिसकर्मियों के साथ मार पीट की गई। ऐसी ही एक घटना पश्चिम बंगाल से आई जहां खाद्य सामग्री की मांग पर प्रदर्शन कर रहे लोगों का पुलिस टीम के साथ झड़प हो गई। यूपी के मुरादाबाद व बिहार के औरंगाबाद से भी ऐसी ही खबरें सामने आईं जहां कोरोना की स्क्रीनिंग के लिए गये मेडिकल टीम पर हमला किया गया। इतना ही नहीं कर्नाटक व महाराष्ट्र से भी ऐसी ही खबरें सुर्खियों में रहीं हैं।

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