देश के भविष्य सृजनकर्ता के खुद का ही भविष्य अधर में,

देश के भविष्य सृजनकर्ता के खुद का ही भविष्य अधर में,

गौरव बाजपेयी, लखनऊ “गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः,गुरुर साक्षात परमब्रह्म तस्मे श्री गुरवे:नमः” “आधुनिक गुरु की एक दर्द से भरी कराहती हुई अनसुनी बयाँ-ए-दास्तां”- प्राचीनकाल में गुरु का स्थान सर्वोपरि रहा है एवं गुरु को ईश्वर के समान ही दर्जा दिया जाता था था उस समय में लोग आश्रमो में विद्या प्राप्त करने

गौरव बाजपेयी, लखनऊ

“गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः,गुरुर साक्षात परमब्रह्म तस्मे श्री गुरवे:नमः”

“आधुनिक गुरु की एक दर्द से भरी कराहती हुई अनसुनी बयाँ-ए-दास्तां”-

प्राचीनकाल में गुरु का स्थान सर्वोपरि रहा है एवं गुरु को ईश्वर के समान ही दर्जा दिया जाता था  था उस समय में लोग आश्रमो में विद्या प्राप्त करने के लिए अपने बच्चो को  गुरुकुलों में भेजा करते थे जहां पर गुरु के सानिध्य में ही रहकर शिष्य शिक्षा प्राप्त करते थे।

समय चक्र के परिवर्तन के अनुसार ही  आधुनिकता में आश्रमो  की तर्ज पर प्राइवेट विद्यालयो ने रूप ले लिया लेकिन संस्कारो के नाम पर छात्रो का गुरु के प्रति  होता सम्मान समाप्त होता दिखाई दे रहा है सभी को आधुनिकता में नए आयाम हासिल करने का अधिकार है लेकिन उस मुकाम तक पहुचाने वाला वह व्यक्तित्व सिर्फ एक  गुरु ही है जो अपना सबकुछ न्यौछावर कर कच्ची मिट्टी का सृजनकर एक खूबसूरत आकृति का निर्माण करता है,

गुरु ही एकमात्र आपके भविष्य का निर्माता है जो आपके अज्ञान को मिटाकर ज्ञान के प्रकाश से अभिसिंचित कर देता है फिर भी उसको हम यह सोचकर सम्मान देने से चूक जाते है कि वह उनकी ड्यूटी को ही निभा रहे है लेकिन हमारा पूर्ण दायित्व बनता है कि उस प्रणेता,गुरु के उस अपार ज्ञान व समर्पण के प्रति आगे बढ़कर अपने संस्कारो और कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन करे।

इन प्राइवेट संस्थानों कि यदि बात करे तो आधुनिकता के परिवेश में शिक्षा व शिक्षक दोनो का अस्तित्व खतरे में दिखाई पड़ रहा है। संस्थानों में दी जा रही शिक्षा प्रणाली मानकों के एकदम विपरीत कार्य करती दिखाई दे रही है। प्राइवेट संस्थाओं के द्वारा शिक्षक के प्रति किया जाने वाला व्यवहार प्रत्येक रूप में अनुचित व अन्यायपूर्ण है जिसके अंतर्गत शिक्षक लगातार शोषण का शिकार हो रहा है जबकि वह भारत के उस भविष्य का निर्माता है जिस पर भारत का भविष्य की नींव निर्भर करती है जिसके लिए गुरु का समग्र समर्पण भाव यह सोचकर किया जाता है कि उसके द्वारा किये गए समर्पण से प्राप्त ज्ञान,अनुभवों व शिक्षा से आधार पर प्रशिक्षु समाज व देश की उन्नति में सर्वांगीण विकास करेगा व समस्त भारतीयता की भागीदारी में भी बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता को  निभाएगा

बल्कि यही नही शिक्षक अपने सम्पूर्ण जीवन का बहुमूल्य अनुभव भी अपने पर प्रशिक्षुओं पर बिना किसी छल-कपट के न्यौछावर कर देता है ताकि उसका संस्थान व प्रशिक्षु उन अनुभवों के आधार पर भविष्य के नवीन आयामो को छूकर सफलता हासिल कर सके।
 सरकार के सिर्फ कहने से कुछ भी हासिल नही होगा जब तक कि शिक्षक के लिए कोई कदम ठोस कदम नही उठाया जाए तब तक शिक्षक की उपेक्षा होती रहेगी क्यों कि विद्यालयो में जब तक शिक्षक स्कूलों की मनमानी सहन करता है तब तक तो शिक्षक पद उसको बर्दाश्त किया जाता है नही तो उसको भिन्न भिन्न आरोप प्रत्यारोप करते हुए बेज्जत कर निकालने में भी कोई विचार तक नही किया जाता । 

देश के भविष्य सृजनकर्ता के खुद का ही भविष्य अधर में,

आरोप प्रत्यारोप पीड़ित व दुखियारे टीचर के पास कोई मार्ग शेष नही बचता कि वह विद्यालय प्रशासन  के प्रति कोई कार्यवाही  कर सके।आजकल शिक्षा संस्थानों के संचालकों में अधिकतर नेता,प्रॉपर्टी डीलर,आपराधिक रिकॉर्ड के लोग ही देखने को मिलेंगे नही तो उन संचालकों के संबंध बड़े-बड़े राजनेताओ व ऊंची पहुच के लोगो से होने के चलते अपने ही संस्थान के स्टाफ को डरा धमकाकर कार्य करवाया जाता है अपने वर्चस्व का दबाव लगातार बनाते रहते है।इन सभी प्रकार की परेशानियो का सामना सिर्फ उस शिक्षक व उसके परिवार को इसलिए करना करना पड़ता है क्यों कि सरकार बिल्कुल भी ध्यान नही दे रही।

 आधुनिकता के परिवेश में  पूर्णरूपेण से शिक्षक प्रताड़ना का शिकार बनता दिखाई दे रहा है जिसके अंतर्गत कुछ प्राइवेट विद्यालय,संस्थान सिर्फ शिक्षा के नाम पर बिजनेस चलाने का कार्य लगातार करते चले आ रहे है जिन पर सरकार बिल्कुल भी ध्यान नही देती दिखाई दे रही है इन प्राइवेट स्कूलों में जहाँ एक ओर तो बिजनेस की तर्ज पर ड्रेस,कॉपी, किताबो स्टेशनरी  संबंधित चीजो में पूर्व नियत दुकानों से मिलकर कमीशनबाजी का कार्य से अभिभावकों को चूना लगाने का कार्य करते है तो वही दूसरी तरफ अध्यापक भी इस ठगी का शिकार हो रहे है और इन संस्थानों की ठगी से अछूते  नही रह गए है।

आधुनिकता के परिवेश में आजकल अध्यापक पद को शोषण परिभाषित करता है क्यों कि एक अध्यापक ही है जो सबकुछ सहन करते हुए भी कुछ नही कहता सिर्फ अपने विद्यार्थियों एवं परिवार के भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए लेकिन प्राइवेट विद्यालयों में भिन्न भिन्न प्रकार से अध्यापको का शोषण विद्यालयों में बदस्तूर किया जा रहा है जिसके अंतर्गत कुछ विद्यालयो में नव नियुक्त होने वाले अध्यापको को न तो नियुक्ति पत्र दिया जाता है और न ही सरकार के द्वारा निर्देशित पीएफ की कोई समुचित व्यवथा ही गयी है यह तक कि अध्यापको को दी जाने वाली प्रथम सैलरी का भी 50%या 25% डिपॉजिट करने का भी नियम बना दिया गया है जो कि न्यायिक नही तो वही कुछ विद्यालयों में तो पूरी ही सैलरी ही जमा करने तक का प्राविधान है, संस्थान के द्वारा टीचर को यह कहकर आश्वस्त किया जाता है कि सेवमुक्ति पर जमा की गई धनराशि दे दी जाएगी लेकिन क्या संविधान में कही भी इस तरह के नियमो का जिक्र है और यदि नही तो आखिरकार इस पर लगाम क्यों  नही लगाई जा रही सिर्फ बात इतने से ही नही खत्म नही हो बल्कि जुल्मो की दास्तां कुछ ऐसी है जिसके लिए शायद शब्द भी कम पड़ जाए विद्यालयो के द्वारा यह फरमान जारी कर रखा है

कि यदि टीचर को विद्यालय छोड़ना हो तो वह 1 माह या 3 माह पूर्व ही लिखित रूप में नोटिस के द्वारा सूचित करेगा लेकिन नही करने की स्थिति में शिक्षक की प्रथम माह की जमा सैलरी  ज़ब्त कर ली जाएगी यदि बात करे नियमो की तो क्या विद्यालय प्रशासन किसी भी  अद्यापक को जब जी चाहे तब निकाल दे बिना किसी पूर्व नोटिस या सूचना के क्या स्कूल प्रशासन पर भी यह नियम लागू होना चाहिये वह भी शिक्षक को 3 माह या 01 माह पूर्व सूचित कर दे। क्या सभी नियम टीचर के ही ऊपर लागू होते है जिस ओर सरकार को ध्यान देना अत्यंत आवश्य है लेकिन भविष्य का निर्माता स्वय ही अपने वर्तमान को सुरक्षित कर पाने में असमर्थ हो गया है कभी प्रतिवर्ष इंक्रीमेंट के नाम पर तो कभी छुट्टी लेने के नाम पर,एवं सैलरी को समय से नही देने पर प्रत्येक प्रकार से अध्यापक का आर्थिक व मानसिक शोषण इन प्राइवेट स्कूलों के द्वारा लगातार बदस्तूर जारी है जिस पर किसी भी प्रकार से सरकार अंकुश लगा पाने में असफल दिखाई दे रही है।

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